बिना प्रतिनियुक्ति समाप्ति के नई पदस्थापना: शिक्षा विभाग में मनमानी या मिलीभगत?
GPM। शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली एक बार फिर सवालों के कटघरे में है। मामला है मरवाही स्थित स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट विद्यालय के पूर्व प्राचार्य शैलेन्द्र अग्निहोत्री का, जो प्रतिनियुक्ति पर तैनात रहते हुए भी बिना प्रतिनियुक्ति समाप्त कराए, अचानक हाई स्कूल बचरवार में संलग्न हो गए। यह न केवल नियमों की धज्जियाँ उड़ाने जैसा है, बल्कि विभागीय लापरवाही और संभावित मिलीभगत की ओर भी इशारा करता है।
प्रतिनियुक्ति समाप्त किए बिना दूसरी जगह पदस्थापना – किसकी अनुमति से?
प्रश्न यह है कि क्या श्री अग्निहोत्री ने राज्य शासन को अपनी प्रतिनियुक्ति समाप्त करने के लिए कोई औपचारिक आवेदन दिया? यदि नहीं, तो फिर वे किस आधार पर दूसरी संस्था में संलग्न हुए? शिक्षा विभाग के नियम स्पष्ट हैं—प्रतिनियुक्ति समाप्ति के बिना किसी अन्य स्थान पर कार्यभार ग्रहण करना पूर्णतः अवैधानिक है। ऐसे में यह स्पष्ट होता है कि या तो विभाग ने जानबूझकर आंखें मूंदी हैं या फिर पूरा खेल अंदरखाने से संचालित हो रहा है।
वित्तीय अनियमितता की भी आशंका,,
यदि श्री अग्निहोत्री को अभी भी आत्मानंद स्कूल मरवाही से वेतन प्राप्त हो रहा है, तो यह शासन के संसाधनों का दुरुपयोग और दोहरी सेवा की गंभीर श्रेणी में आएगा। क्या जिला शिक्षा अधिकारी, बीईओ और अन्य जिम्मेदार अधिकारी इस विषय से अनजान हैं? यदि नहीं, तो अब तक क्या कार्रवाई की गई? और यदि हां, तो यह प्रश्न और गंभीर हो जाता है कि आखिर किसके संरक्षण में यह सब हो रहा है?
शिक्षा व्यवस्था की साख पर सवाल,,
स्थानीय जनप्रतिनिधि, शिक्षाविद् और आमजन इस पूरे घटनाक्रम को शिक्षा व्यवस्था के गिरते स्तर का उदाहरण मान रहे हैं। उनका कहना है कि जब नियम सिर्फ किताबों और कागज़ों में कैद रह जाएँ और अधिकारी खुलेआम मनमानी करें, तो इससे न केवल योग्य शिक्षकों का मनोबल टूटता है, बल्कि बच्चों के भविष्य के साथ भी खिलवाड़ होता है।
कार्रवाई होगी या फाइलों में दबेगा मामला?
अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या शिक्षा विभाग इस मामले में निष्पक्ष जांच कर दोषियों पर कार्रवाई करेगा, या फिर इसे भी रिवाज की तरह फाइलों के नीचे दफना दिया जाएगा? यदि विभाग ने समय रहते सख्त कदम नहीं उठाए, तो यह मामला शासन के उच्च स्तर तक भी पहुँच सकता है।
जनहित में माँग—जांच हो और दोषियों पर हो सख्त कार्रवाई
जनता और जागरूक नागरिकों की ओर से अब यह माँग उठने लगी है कि इस मामले में उच्च स्तरीय जांच बैठाई जाए और यदि कोई दोष सिद्ध होता है, तो जिम्मेदारों को तत्काल बर्खास्त कर शासन को आर्थिक क्षति की भरपाई कराई जाए। अब सवाल यह नहीं कि नियम टूटे, सवाल यह है कि क्या शिक्षा विभाग सो रहा है या सौदेबाज़ी में लिप्त है?

Author: Ritesh Gupta
Professional JournalisT