✍🏻 रिपोर्ट: रितेश कुमार गुप्ता, लल्लनगुरु न्यूज़
📍 कटघोरा, जिला कोरबा | 10 जून 2025: कोरबा जिले के बांगों थाना परिसर में सहायक उपनिरीक्षक नरेन्द्र सिंह परिहार की निर्मम हत्या के मामले में कटघोरा के तृतीय अपर सत्र न्यायाधीश एच.के. रात्रे की अदालत ने करन गिरी को दोषी करार देते हुए भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) एवं धारा 450 (गृह-अतिचार कर हत्या करना) के तहत आजन्म कारावास की सजा सुनाई है। अदालत का यह फैसला न सिर्फ एक हत्यारे को सज़ा देने वाला है, बल्कि यह पुलिस तंत्र की आंतरिक खामियों पर भी कठोर टिप्पणी करता है।
हत्या के 24 घंटे तक ‘सन्नाटा’, जांच के नाम पर ‘संदेह की धुंध’
10 मार्च 2023 की सुबह जब बांगों थाना परिसर स्थित बैरक के कमरे में सहायक उपनिरीक्षक नरेन्द्र सिंह परिहार का शव खून से लथपथ मिला, तो पूरे महकमे में सन्नाटा छा गया। परिहार के गले, सिर, कमर और पीठ पर कुल 11 गंभीर चोटें पाई गईं। परंतु हैरानी की बात यह रही कि शुरुआती 24 घंटे तक न कोई गिरफ्तारी हुई, न ही किसी एक संदिग्ध पर उंगली उठाई गई। अदालत में पेश रिपोर्ट से यह उजागर हुआ कि घटना की रात थाना स्टाफ सामूहिक भोज में शामिल थे, लेकिन हत्या के समय और हत्यारे को लेकर हर कोई ‘अंजान’ बना रहा।
मोबाइल लोकेशन, खून से सना कपड़ा और कबूलनामा: आरोपी की गढ़ी हुई कहानी ध्वस्त
जांच में यह खुलासा हुआ कि करन गिरी का मोबाइल फोन घटनास्थल के टावर लोकेशन पर सक्रिय था।
👉 आरोपी ने मेमोरेन्डम बयान में स्वीकार किया कि उसने टांगी से परिहार की हत्या की और फिर हथियार को पोड़ी नाले किनारे झाड़ियों में फेंक दिया।
👉 आरोपी के कपड़ों पर मिला खून एफएसएल रिपोर्ट में मृतक के खून से मेल खाता पाया गया।
यह भी स्पष्ट हुआ कि हत्या के समय आरोपी ने वही कपड़े पहने थे, जो बाद में जब्त किए गए।
अदालत ने कहा — ‘हत्या की मंशा थी, बचाव पक्ष के बहाने बेमानी’
न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा:
> “यह हत्या न केवल जानबूझकर, क्रूरता से की गई है, बल्कि इसे सोच-समझकर एक सुनियोजित तरीके से अंजाम दिया गया है। आरोपी करन गिरी द्वारा किया गया झूठे फँसाए जाने का दावा तथ्यों और वैज्ञानिक साक्ष्यों के सामने टिक नहीं पाया।”
👉 धारा 302 (मर्डर) — जानबूझकर की गई हत्या का प्रमाणित मामला।
👉 धारा 450 (रात में अनधिकृत प्रवेश कर हत्या करना) — किसी के घर या परिसर में जानलेवा इरादे से घुसपैठ।
बचाव पक्ष की ‘बलि का बकरा’ थ्योरी ध्वस्त
बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि हत्या में थाना के अन्य कर्मियों की संलिप्तता है और करन गिरी को बलि का बकरा बनाया गया। लेकिन न्यायालय ने इसे “कल्पनाओं पर आधारित और जांच को भ्रमित करने वाला प्रयास” करार देते हुए सिरे से खारिज कर दिया।
पुलिस महकमे पर गंभीर सवाल — क्या भीतर से खोखली हो चुकी है व्यवस्था?
जब एक सहायक उपनिरीक्षक खुद थाना परिसर में सुरक्षित नहीं है, तब आम जनता की सुरक्षा की गारंटी कौन देगा?
क्या बांगों थाना जैसी घटनाओं को सिर्फ अपराध मानकर छोड़ देना काफी है?
या फिर पुलिस व्यवस्था को भीतर से झकझोरने और जवाबदेही तय करने की जरूरत है?
यह सिर्फ न्याय नहीं, एक चेतावनी है — सिस्टम को भीतर से सुधारो
करन गिरी को दोषी ठहराना पीड़ित परिवार को न्याय देना है, लेकिन इसके साथ-साथ यह फैसला उन सभी व्यवस्थागत खामियों पर कठोर टिप्पणी करता है जो इस हत्या के लिए जमीन तैयार कर चुकी थीं।
👉 यदि समय रहते न केवल प्रभावशाली जांच बल्कि थाने की आंतरिक संरचना और संबंधों की निगरानी होती, तो शायद परिहार जिंदा होते।
कानून का चाबुक चला, लेकिन सिस्टम पर अभी भी सर्जरी बाकी है
इस फैसले से यह स्पष्ट हुआ है कि कोई भी अपराधी, चाहे वह सिस्टम के भीतर हो या बाहर, अब न्याय की आंखों से बच नहीं सकता। यह केस एक मॉडल केस है, जो यह बताता है कि परिधिगत साक्ष्य, वैज्ञानिक सबूत और ईमानदार विवेचना मिलकर अपराध को बेनकाब कर सकते हैं।

Author: Ritesh Gupta
Professional JournalisT