रायपुर | 12 जून 2025: छत्तीसगढ़ के स्कूल शिक्षा विभाग में लागू नई स्थानांतरण नीति (2025) के तहत भले ही 5 जून से सभी अटैचमेंट समाप्त कर दिए गए हों, लेकिन कुछ शिक्षक अब भी स्कूलों की बजाय कार्यालयों में बाबूगिरी कर रहे हैं। वे शिक्षक जिनकी नियुक्ति स्कूलों में पढ़ाने के लिए हुई थी, वर्षों से विभागीय कार्यालयों में कुर्सी संभाले बैठे हैं — और इसका खामियाजा भुगत रहे हैं छात्र।
कई स्कूलों में नहीं सुधरा शिक्षक-छात्र अनुपात
जिन शिक्षकों की स्कूलों में उपस्थिति अनिवार्य है, वे कार्यालयों में बैठकर अधिकारी या नेताओं की शह पर पदों से चिपके हुए हैं। ऐसे में सुदूर अंचलों के कई स्कूलों में अभी भी शिक्षक-छात्र अनुपात बुरी तरह बिगड़ा हुआ है। इससे ना सिर्फ शिक्षण कार्य प्रभावित हो रहा है, बल्कि विद्यार्थियों की गुणवत्ता पर भी गहरा असर पड़ रहा है।
नीति तो लागू, लेकिन अमल ढीला
शासन ने स्पष्ट निर्देश दिए थे कि 5 जून 2025 के बाद कोई भी शिक्षक-अधिकारी कार्यालयों में अटैच नहीं रहेगा, फिर भी जनप्रतिनिधियों और अफसरों की सिफारिशों पर कुछ कर्मचारी विभागीय आदेशों की धज्जियां उड़ा रहे हैं।
शिक्षक स्कूलों में कार्यरत दिखाए जा रहे हैं, लेकिन हकीकत में वे जिला, संकुल या बीईओ कार्यालयों में सेवाएं दे रहे हैं। कुछ स्कूलों में केवल 1 या 2 शिक्षक कार्यरत हैं, जबकि छात्र संख्या 100 से अधिक है। कई स्थानों पर एक भी शिक्षक उपस्थित नहीं है और व्यवस्थाएं संविदा शिक्षकों से चलाई जा रही हैं।
जिम्मेदार चुप!
जब पत्रकारों ने संबंधित अधिकारियों से इस संबंध में सवाल पूछे, तो “जांच कराएंगे”, “सूचना नहीं है”, “शीघ्र कार्रवाई करेंगे” जैसे टालमटोल जवाब ही सुनने को मिले।
राजनीति और अफसरशाही का गठजोड़
शिक्षकों के इन ‘पसंदीदा अटैचमेंट’ का असली कारण है सत्ता और सिस्टम के बीच मजबूत तालमेल। जो शिक्षक किसी नेता, अधिकारी या संघ के करीबी हैं, वही वर्षों से कार्यालयों में जमे हुए हैं। नई स्थानांतरण नीति को सफलतापूर्वक लागू करने के लिए सिर्फ आदेश नहीं, कठोर निगरानी और राजनीतिक दबाव से मुक्त इच्छाशक्ति की आवश्यकता है। वरना शिक्षा के अधिकार की भावना केवल कागजों तक सीमित रह जाएगी और बच्चे यूं ही गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से वंचित रहेंगे।

Author: Ritesh Gupta
Professional JournalisT