गौरेला-पेंड्रा-मरवाही। आदिवासी बाहुल्य मरवाही तहसील में पूंजीपतियों द्वारा जमीन की हेराफेरी का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। ताज़ा मामला ग्राम पंचायत बंशीताल के ग्राम दानीकुंडी का है, जहां ग्रामीणों और पंचायत प्रतिनिधियों ने गंभीर आरोप लगाया है कि गौरेला निवासी विजय केडिया पिता लक्ष्मण केडिया ने कूट-रचना कर बड़े झाड़ जंगल मद भूमि (खसरा नंबर 10/31) पर अवैध कब्ज़ा कर लिया।
बड़े झाड़ जंगल मद भूमि का महत्व
ग्रामीणों का कहना है कि यह जमीन ग्राम की निस्तारी और सार्वजनिक उपयोग के लिए सुरक्षित भूमि है। यहां वर्षों से हाट-बाज़ार लगता था, सार्वजनिक हैंडपंप और बाथरूम थे, और आज भी कई पुराने सरई के पेड़ खड़े हैं। ऐसे में इस भूमि का किसी निजी व्यक्ति के नाम दर्ज होना ही घोर अवैध और प्रशासन की नाकामी को उजागर करता है।
खरीदी गई जमीन दूसरी, कब्ज़ा कहीं और!
तथ्यों से साफ़ है कि विजय केडिया ने खसरा नंबर 10/16 की जमीन खरीदी थी, जो पंचायत कार्यालय के पास बंशीताल मार्ग पर है। लेकिन, पटवारी और तहसीलदार की मिलीभगत से 2013-14 में कई दूरी पर स्थित 10/31 को उनके नाम दर्ज करवा दिया गया। सवाल यह है कि आखिर राजस्व अमले ने कैसे जंगल मद की भूमि को निजी खाते में दर्ज कर दी?
पुराने कारनामों का भी खुलासा
ग्रामीणों ने यह भी आरोप लगाया कि विजय केडिया पूर्व में भी 70 डिसमिल भूमि को कूट-रचना कर 1 एकड़ 67 डिसमिल में बदलवा चुके हैं। बाद में हाईकोर्ट के हस्तक्षेप पर मरवाही राजस्व विभाग को 97 डिसमिल भूमि बेख़दल कर पुनः 70 डिसमिल करना पड़ा। लेकिन, इसके बावजूद उनकी मनमानी जारी रही और अब सीधे सड़क किनारे की कीमती जंगल मद भूमि को हथिया लिया गया है।
ऊंचे दाम पर बेचने की साज़िश,,,
ग्रामवासियों का आरोप है कि नक्शे में फेरबदल कर विवादित भूमि को सड़क किनारे दिखाया गया। साफ़ है कि भविष्य में इस भूमि को ऊंचे दाम पर बेचने की साज़िश रची गई है। ग्रामीणों का कहना है कि यह सब पटवारी, तहसीलदार और कुछ राजस्व अधिकारियों की मिलीभगत के बिना संभव ही नहीं है।
ग्रामवासियों और संगठनों का आक्रोश
ग्राम पंचायत बंशीताल के सरपंच, उपसरपंच, जनपद सदस्य और सैकड़ों ग्रामीणों ने कलेक्टर को लिखित शिकायत सौंपी है। उनका कहना है—
“यह जमीन हमारी हाट-बाज़ार और सार्वजनिक सुविधाओं के लिए सुरक्षित थी, लेकिन अधिकारियों और पूंजीपति की सांठगांठ से हमारे अधिकार छीने जा रहे हैं।” इसी तरह भगवती मानव कल्याण संगठन ने भी कलेक्टर जनदर्शन में आवेदन देकर मांग की है कि इस पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच हो और भूमि को तुरंत बड़े झाड़ जंगल मद खाते में वापस दर्ज किया जाए।
जिला प्रशासन पर निगाहें
अब सवाल यह है कि क्या जिला प्रशासन मिलीभगत में लिप्त पटवारी और तहसीलदार पर कार्रवाई करेगा? क्या अवैध कब्ज़ाधारी पूंजीपति पर एफआईआर दर्ज होगी? या फिर आदिवासी अंचल की भूमि बचाने की लड़ाई भी कागज़ी खानापूर्ति में ही दबा दी जाएगी? ग्रामीणों का कहना है कि अगर प्रशासन ने ठोस कदम नहीं उठाया, तो वे आंदोलन करने पर मजबूर होंगे।
Author: Ritesh Gupta
Professional JournalisT









