सीईओ व शाखा प्रभारी ने सरकारी धन से बोगस बिल बनाकर निकाले लाखों रुपए
कोरबा/पोड़ी उपरोड़ा – ग्राम पंचायतों के विकास कार्यों के लिए निर्धारित 15वें वित्त आयोग की राशि का अनधिकृत उपयोग कर बड़े पैमाने पर घोटाला उजागर हुआ है। पोड़ी उपरोड़ा जनपद पंचायत के अधिकारी ही भ्रष्टाचार की साजिश में संलिप्त पाए गए हैं। सीईओ जयप्रकाश डड़सेना और शाखा प्रभारी लालदेव भगत ने मिलकर चौहान टेलीकॉम को करोड़ों रुपए का अनुचित लाभ पहुंचाने के लिए बोगस बिल जारी किए। इस खेल का केंद्र बिंदु था आम निर्वाचन पंचायत चुनाव 2025 हेतु मतदाता सूची व अन्य प्रपत्रों की फोटोकॉपी तथा स्टेशनरी के नाम पर भारी राशि की फर्जी खपत दर्शाना।
वहीं अचरज की बात यह है कि प्रस्तुत किए गए सभी बिल बिना किसी वैध जीएसटी नंबर के बनाए गए। विभागीय मद और निर्वाचन मद के अलग-अलग नियमन होते हैं, फिर भी 15वें वित्त आयोग की अनुदान राशि से स्टेशनरी व फोटोकॉपी का भुगतान करने की नियामक अनुमति नहीं है। इसका उद्देश्य मुख्य रूप से ग्राम पंचायतों के बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य, जल आपूर्ति और सामुदायिक विकास कार्यों के लिए निधि मुहैया कराना होता है।
कहीं व्यक्तिगत स्वार्थ का खेल तो नहीं?
दिनांक 30 अप्रैल 2025 को सम्पन्न हुई जनपद पंचायत की सामान्य सभा में अनुमोदन की आड़ में यह घोटाला अंजाम दिया गया। आश्चर्यजनक पहलू यह कि कोरबा जिले में पंचायत चुनाव तो 17 फरवरी 2025 को संपन्न हो चुका था और उसके बाद कोई निर्वाचन नहीं था। बावजूद इसके फोटोकॉपी व अन्य प्रपत्रों के नाम पर करोड़ों रुपए की धनराशि का बेतहाशा फर्जी भुगतान किया गया। चौहान टेलीकॉम द्वारा 24 मार्च 2025 को केवल एक ही दिन में आठ अलग-अलग बिल (क्रमांक 181 से 193) जारी कर 1 लाख 93 हजार 380 फोटोकॉपी का हिसाब दिया गया। प्रति पेज 2 रुपये की दर से कुल 3 लाख 86 हजार 760 रुपये का भुगतान दिखाया गया। यह पूरी रकम 15वें वित्त आयोग की योजना से खर्च की गई।
निर्वाचन व्यय मद अलग, फिर वित्त आयोग से क्यों भुगतान?
विवेचना से पता चला है कि निर्वाचन व्यय के लिए अलग मद होता है, फिर भी 15वें वित्त आयोग की निधि का उपयोग स्टेशनरी, फोटोकॉपी आदि पर किया जाना बेहद संदिग्ध है। सवाल उठता है कि जब मतदान व मतगणना तो पहले ही संपन्न हो चुकी थी, तब 24 मार्च 2025 को अचानक आठ बिल एक साथ क्यों जारी किए गए? क्यों एक सामान्य बिल में थोक में फोटोकॉपी की संख्या व राशि का विवरण नहीं दर्ज किया गया?
नेताओं की खुशामद या दुकानदार को लाभ पहुंचाने की साजिश?
स्थानीय जनप्रतिनिधि एवं सूत्र बताते हैं कि यह खेल क्षेत्र के कुछ नेताओं की खुशामद व प्रशासनिक अधिकारियों की मिलीभगत से संचालित हो रहा है। केवल 10-20 हजार का फेर-फार समझ में आता, लेकिन यह खेल करोड़ों की राशि से हो रहा है। यदि इस प्रकार के घोटाले जारी रहते हैं, तो यह सवाल उठता है कि विकास कार्यों की वास्तविक स्थिति क्या होगी? जनता के पैसे की यह अनैतिक बर्बादी किसके इशारे पर और किस उद्देश्य के लिए की जा रही है?
अब देखने वाली बात यह है कि शासन-प्रशासन इस गंभीर मामले में कितना संज्ञान लेता है। क्या सच की आंच में शामिल दोषियों पर उचित कार्यवाही होगी या फिर यह खेल अनदेखा कर दिया जाएगा?

Author: Ritesh Gupta
Professional JournalisT