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जहां कंक्रीट है, वहां ‘इको-टूरिज्म’ बताया जा रहा…! फर्जी जाति प्रमाणपत्र से टिके PRO काशी पर उठे सवाल, जीपीएम में स्थायी जनसंपर्क राज का खुलासा

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जहां कंक्रीट है, वहां ‘इको-टूरिज्म’ बताया जा रहा…! फर्जी जाति प्रमाणपत्र से टिके PRO काशी पर उठे सवाल, जीपीएम में स्थायी जनसंपर्क राज का खुलासा 
जीपीएम : – कहते हैं, इको-टूरिज्म वहां होता है, जहां पेड़ लहराएं, झरने गाएं और हवा में हरियाली का संगीत घुला हो…मगर जीपीएम जिले में यह परिभाषा अब सरकारी प्रेस रिलीज़ों ने बदल दी है। जहां प्राकृतिक सौंदर्य के बीच कंक्रीट के जंगल खड़े हैं, वहीं इको टूरिज्म बताया जा रहा है! जिले में पहले प्रकृति को सीमेंट और गिट्टी से बर्बाद किया गया, और अब उसी बर्बादी के मंजर का इनाम राजधानी में लिया जा रहा है वो भी खुद कलेक्टर द्वारा,
जो राजमेरगढ़ में नहीं बल्कि रायपुर मे सफलता के पोस्टर सजा रही हैं। इधर राजमेरगढ़ प्रोजेक्ट की सफलता-कथा गढ़ने वाले जनसंपर्क विभाग ने जो तस्वीरें जारी की हैं, उनमें प्रकृति तो गायब है,पर सीमेंट खूब चमक रहा है। पेड़ों की जगह दीवारें, पगडंडियों की जगह गिट्टी की सड़कें, और इस पर भी दावा पर्यावरण संरक्षण का नया मॉडल!
स्थानीय पर्यावरण प्रेमियों ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि जहां जंगल को सीमेंट से पाटा जाए, वहां इको-टूरिज्म नहीं, इंफ्रास्ट्रक्चर का पाखंड कहा जाना चाहिए।
PRO का पैर… अंगद का पैर!
इस प्रचार की परंपरा के पीछे जिनका नाम सबसे ज़्यादा चर्चा में है, वो वही हैं जो वर्षों से इसी जिले में अंगद की तरह पैर टिकाए बैठे हैं।
जी हाँ, वही काशी बाबू, जिनकी पहचान अब जनसंपर्क अधिकारी से ज़्यादा स्थायी प्रभारी के रूप में हो चुकी है। कलेक्टर बदल गए, अफसर ट्रांसफर हो गए, लेकिन जनसंपर्क विभाग का दरवाज़ा खोलो तो वही पुराना हस्ताक्षर अटल बिहारी काशी। और अब, ताज़ा राज्यस्तरीय जांच सूची में यह नाम फर्जी जाति प्रमाणपत्र से नौकरी पाने वालों में शामिल बताया गया है। यानी अब जनसंपर्क के साथ-साथ जाति-संपर्क की कहानी भी उजागर हो चुकी है।
फर्जी जाति प्रमाणपत्र में भी जनसंपर्क की छाया
“मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार…”,
राज्यस्तरीय जांच समिति द्वारा जारी सूची में 267 अधिकारियों-कर्मचारियों के नाम शामिल हैं, जिन्होंने कथित तौर पर फर्जी जाति प्रमाणपत्र से नौकरी पाई। इसी सूची में जनसंपर्क विभाग के सहायक संचालक अटल बिहारी काशी का नाम भी बताया गया है।
अब सवाल यह है कि जो अधिकारी जनता और शासन के बीच पारदर्शिता का सेतु बनने का दावा करते हैं, वे खुद फर्जी पुलिया पर कैसे खड़े पाए गए?
कलेक्टर की छाया या जनसंपर्क का सूरज?
स्थानीय पत्रकारों का कहना है कि संबंधित अधिकारी कलेक्टर की निकटता का दावा करते हुए कई प्रशासनिक कामों में सीधा हस्तक्षेप करते हैं। करीबी का करंट इतना असरदार है कि कभी-कभी फाइलें भी दिशा बदल लेती हैं। जिले में कहा जाता है यहां प्रेस रिलीज़ नहीं, काशी रिलीज़ होती है जो खबर छपनी नहीं चाहिए, वो खुद ही ग़ायब हो जाती है।
विभागीय सूत्रों का कहना है कि कई परियोजनाओं की सफलता रिपोर्टें कागज़ और कैमरे के सहारे गढ़ी गई हैं। सच्चाई की जगह प्रचार, और उपलब्धि की जगह फोटो ने ले ली है।
एक जिले में स्थायी पदस्थापना नियम या रसूख?
शासन के नियम कहते हैं कि कोई भी अधिकारी लंबे समय तक एक ही जिले में पदस्थ नहीं रह सकता। लेकिन जीपीएम जिले का यह मामला प्रशासनिक नीति से नहीं,बल्कि प्रभाव नीति से संचालित लगता है। सूत्र बताते हैं कि विभागीय पकड़ और राजनीतिक समीकरणों के सहारे यह स्थायी नियुक्ति संस्कृति कायम है। अब जब नाम फर्जी जाति सूची में आया है, तो जिले के भीतर सवाल उठने लगे हैं क्या विभाग को अब स्थायी कर्मचारी चाहिए या स्थायी विवाद?
प्रश्न
क्या शासन इस दोहरे खेल स्थायी पदस्थापना और फर्जी प्रमाणपत्र पर संज्ञान लेगा? क्या लंबे समय से जिले में टिके PRO पर नीति और नियम दोनों लागू होंगे? या फिर यह स्थायी पदस्थापना अब जिले की नई परंपरा और पुराना खेल बन चुकी है? अब जीपीएम की हवा में नया नारा गूंज रहा है जहां कंक्रीट है, वहां इको-टूरिज्म है…जहां पकड़ है, वहां पदस्थापन है… और जहां सच्चाई है, वहां मौन है।”
Saket Verma
Author: Saket Verma

A professional journalist

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