जंगल नहीं, सिस्टम बना मौत का मैदान___24 घंटे में दो महिलाओं की बलि, कटघोरा DFO की नाकामी से बेकाबू हुआ लोनर हाथी
कोरबा।कटघोरा वनमंडल में जंगली हाथी नहीं, बल्कि वन विभाग की घोर लापरवाही ग्रामीणों के लिए काल बन चुकी है। झुंड से बिछड़ा एक लोनर हाथी कई दिनों से आबादी वाले इलाकों में घूम रहा था, इसकी सूचना बार-बार दी गई, लेकिन DFO से लेकर फील्ड स्टाफ तक की निष्क्रियता ने हालात को इस कदर बिगाड़ दिया कि 24 घंटे के भीतर दो महिलाओं की दर्दनाक मौत हो गई। इसके बाद भी वन विभाग की कार्यप्रणाली में कोई ठोस बदलाव नजर नहीं आ रहा।
गुरुवार सुबह जटगा वन परिक्षेत्र के ग्राम बिंझरा-चंदनपुर में 36 वर्षीय हिना निर्मलकर नित्य क्रिया के लिए घर से निकली थीं। ग्रामीणों के मुताबिक हाथी इलाके में पहले से मौजूद था, लेकिन न तो कोई निगरानी दल था और न ही कोई चेतावनी तंत्र। सामने आते ही हाथी ने महिला पर हमला कर दिया। हाथ उखड़ गया, चीख सुनने वाला कोई नहीं था और कुछ ही पलों में एक घर की महिला हमेशा के लिए खामोश हो गई।
इससे पहले चैतमा क्षेत्र के नामपानी गांव में फूलसुंदरी मंझवार की मौत भी इसी लोनर हाथी के हमले में हो चुकी थी। वह अपने पति के साथ घर के बाहर सो रही थीं। आधी रात को हाथी आया और जान ले गया। दो अलग-अलग इलाके, दो अलग-अलग महिलाएं, लेकिन जिम्मेदार एक ही—कटघोरा वनमंडल का लचर सिस्टम।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब हाथी की मौजूदगी की जानकारी कई दिनों से थी, तब DFO क्या कर रहा था। ग्रामीण बताते हैं कि खेतों में फसल नुकसान, पैरों के ताजा निशान और रात में हाथी की दहाड़ आम बात हो चुकी थी। इसके बावजूद न तो प्रभावी ट्रैकिंग की गई, न ड्रोन या रैपिड रिस्पॉन्स टीम उतारी गई और न ही हाथी को जंगल की ओर खदेड़ने का कोई ठोस प्रयास हुआ। वन विभाग सिर्फ कागजी अलर्ट जारी करता रहा और ज़मीनी हकीकत को नजरअंदाज करता रहा।
हर मौत के बाद वही पुराना तमाशा दोहराया गया—अधिकारियों का मौके पर पहुंचना, संवेदना जताना और 25 हजार रुपये की तात्कालिक सहायता थमा देना। सवाल यह है कि क्या यही वन विभाग की जवाबदेही है। क्या एक महिला की जान की कीमत सिर्फ इतनी ही है। अगर समय रहते कार्रवाई होती, तो क्या दो परिवारों को उजड़ने से नहीं बचाया जा सकता था।
यह हादसा सिर्फ वन विभाग की नाकामी नहीं, बल्कि प्रशासनिक दावों की भी पोल खोलता है। हिना निर्मलकर नित्य क्रिया के लिए बाहर गई थीं, जबकि कोरबा जिला वर्षों पहले ओडीएफ घोषित किया जा चुका है। अगर शौचालय वास्तव में उपयोग योग्य होते, तो क्या महिला को बाहर जाना पड़ता। साफ है कि योजनाएं फाइलों में सफल हैं, ज़मीन पर नहीं।
लगातार मौतों से इलाके में भय और आक्रोश चरम पर है। लोग घर से बाहर निकलने से डर रहे हैं और खुलकर कह रहे हैं कि अगर जल्द ही लोनर हाथी को आबादी से दूर नहीं किया गया और जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं हुई, तो वे आंदोलन के लिए मजबूर होंगे।
अब सवाल सिर्फ हाथी का नहीं है। सवाल यह है कि कटघोरा वनमंडल का DFO आखिर किस तीसरी मौत का इंतजार कर रहा है। जब तक जवाबदेही तय नहीं होगी, तब तक जंगल से ज्यादा खतरनाक यह सिस्टम बना रहेगा।
Author: Ritesh Gupta
Professional JournalisT








