कोरबा/पाली। कोयला परिवहन के नाम पर पाली क्षेत्र के चेपा जांच चौकी के आस-पास चल रहा अवैध वसूली तंत्र अब खुलकर सामने आने लगा है। ट्रक चालकों से खुलेआम 20 से 100 रुपये तक की जबरन वसूली की जा रही है, और यह पूरा खेल खनिज विभाग तथा स्थानीय प्रशासन की “संरक्षण छतरी” में फल-फूल रहा है।
“सील लगी रसीद” के नाम पर उगाही — संगठित वसूली गैंग सक्रिय
स्थानीय परिवहन स्रोतों के अनुसार, चौकी पर तैनात दलाल और तथाकथित “वसूली एजेंट” हर गुजरने वाले कोयला ट्रक से “रसीद” के नाम पर रकम वसूल रहे हैं। यह रकम 20 से 100 रुपये तक तय की गई है, और जो चालक इनकार करता है, उसका वाहन रोककर घंटों खड़ा रखा जाता है। सूत्र बताते हैं कि इस नेटवर्क में कुछ खनिज विभाग के कर्मचारी और प्रभावशाली ठेकेदारों का गठजोड़ शामिल है, जो इस अवैध वसूली से मोटी कमाई कर रहे हैं।
खनिज विभाग की चुप्पी संदिग्ध — कार्रवाई के नाम पर दिखावा
सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्षेत्र में तैनात खनिज विभाग के अधिकारी आखिर इस “खुले अवैध कारोबार” से अनजान कैसे रह सकते हैं?
स्थानीय लोगों का आरोप है कि विभागीय अधिकारी केवल औपचारिक जांच का ढोंग करते हैं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर कोई कार्रवाई नहीं होती। यही कारण है कि यह वसूली तंत्र वर्षों से बेखौफ चल रहा है।
जनता का सवाल — किसके संरक्षण में चल रहा यह वसूली साम्राज्य?
पाली और आसपास के नागरिकों का कहना है कि हर चौकी पर अलग-अलग दर तय कर ली गई है। “सील लगी रसीद” का यह खेल प्रशासनिक तंत्र की विश्वसनीयता पर बड़ा प्रश्नचिह्न है।
सामाजिक संगठनों ने मांग की है कि इस पूरे नेटवर्क की जांच राज्य स्तरीय टीम या ईओडब्ल्यू (आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो) से कराई जाए, ताकि असली जिम्मेदारों तक पहुंचा जा सके।
औद्योगिक क्षेत्र पर असर — ईमानदार ट्रांसपोर्टर परेशान
वसूली के इस सिस्टम ने कोरबा-पाली औद्योगिक क्षेत्र के सैकड़ों ट्रक ऑपरेटरों और परिवहन कंपनियों को प्रभावित किया है। ईमानदारी से कर चुकाने वाले परिवहनकर्ता अब इस “सिस्टमेटिक लूट” से त्रस्त हैं। उनका कहना है कि जब तक खनिज विभाग के भीतर बैठे भ्रष्ट तत्त्वों पर कार्रवाई नहीं होगी, तब तक यह अवैध वसूली खत्म नहीं होगी।
“जनहित में जांच अनिवार्य” — जनता की एक स्वर में मांग
जनप्रतिनिधियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कहा है कि चेपा चौकी समेत पूरे पाली क्षेत्र में चल रहे कोयला परिवहन से जुड़ी वसूली और रेत उत्खनन की गड़बड़ियों की स्वतंत्र एजेंसी से जांच होनी चाहिए।
यह सिर्फ भ्रष्टाचार का मामला नहीं, बल्कि जनहित और औद्योगिक ईमानदारी से जुड़ा सवाल है।

Author: Saket Verma
A professional journalist