रायपुर/छत्तीसगढ़ | विशेष रिपोर्ट : छत्तीसगढ़ में खनिज न्यास निधि (District Mineral Foundation – DMF) के नाम पर एक ऐसा घोटाला सामने आया है, जिसने सरकारी तंत्र की कार्यप्रणाली और अफसरशाही की असली तस्वीर उजागर कर दी है। राज्य की चर्चित महिला IAS अधिकारी रानू साहू को प्रवर्तन निदेशालय (ED) की जांच में 57.85 करोड़ रुपये की रिश्वत लेने का खुलासा हुआ है। ये रकम उन्हें ठेकेदारों, सप्लायर्स और दलालों से मिली, जिसके लिए योजनाओं की स्वीकृति और फंड रिलीज में घोर अनियमितताएं की गईं।
🔍 क्या है DMF फंड और इसका मकसद?
DMF का गठन भारत सरकार द्वारा खनन से प्रभावित जिलों में विकास कार्यों के लिए किया गया था। इसका उद्देश्य यह था कि जिन क्षेत्रों में खनन से पर्यावरण और सामाजिक क्षति हुई है, वहां शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी, सड़क और अन्य बुनियादी सुविधाओं का विकास किया जा सके। लेकिन इस फंड को अधिकारियों ने निजी संपत्ति बनाने का साधन बना लिया।
💰 कैसे हुआ घोटाला? नियमों में बदलाव और पैसे का खेल
जांच में यह बात सामने आई है कि:
DMF फंड से करोड़ों रुपये के काम बिना टेंडर के दिए गए।
एक ही कंपनी और सप्लायर को बार-बार भुगतान किया गया।
जिला कलेक्टर और CEO स्तर के अधिकारी फंड के खर्च को सीधे स्वीकृत कर रहे थे।
सरकारी दरों से कई गुना अधिक मूल्य पर सामग्री की खरीदी की गई।
नकली बिल, अधूरी आपूर्ति और भुगतान में हेराफेरी आम बात बन गई थी।
👩💼 IAS रानू साहू: फाइल पास करने की कीमत 57.85 करोड
ED के मुताबिक, रानू साहू जब बालोद, कोरबा, कांकेर जैसे जिलों में कलेक्टर रहीं, तब DMF फंड की राशि के प्रबंधन में गंभीर अनियमितताएं हुईं। जांच में यह भी सामने आया है कि रानू साहू के कहने पर नियमों में बदलाव किए गए ताकि विशेष ठेकेदारों को लाभ पहुंचाया जा सके।
> “कलेक्टर रहते हुए रानू साहू ने अपनी शक्ति का दुरुपयोग करते हुए मनचाहे लोगों को ठेके दिलवाए और बदले में मोटी रकम वसूली। यह संगठित भ्रष्टाचार का स्पष्ट उदाहरण है।”
— ED सूत्र
📁 किन जिलों में हुआ सबसे बड़ा खेल?
रानू साहू और अन्य अफसरों के कार्यकाल में जिन जिलों में DMF राशि का सबसे ज्यादा दुरुपयोग हुआ, उनमें प्रमुख हैं:
बालोद – 20 करोड़ से अधिक की योजनाएं बिना निविदा के
कोरबा – खनिज परिवहन और सड़क निर्माण में भारी भ्रष्टाचार
कांकेर – सप्लाई आदेशों में नियमों का उल्लंघन
बस्तर, रायगढ़, बलरामपुर, सरगुजा – टेंडर प्रक्रिया में फर्जीवाड़ा
📦 ठेकेदारों और सप्लायरों की भूमिका:
ED ने जांच में पाया कि कई ठेकेदारों ने बिना काम किए ही करोड़ों का भुगतान लिया। कुछ प्रमुख फर्मों को एक ही समय में कई जिलों में भुगतान हुआ। यही नहीं, एक ही व्यक्ति अलग-अलग नाम से सप्लाई कंपनियां चला रहा था।
⚖️ कानूनी कार्यवाही और ED की पकड़:
ED ने रानू साहू की संपत्तियों की जांच शुरू कर दी है।
अभी तक 14 से अधिक स्थानों पर छापेमारी हो चुकी है।
कुछ अफसरों को गवाह बनाया जा रहा है, जबकि कई पर केस दर्ज होने की संभावना है।
राज्य शासन द्वारा फिलहाल चुप्पी साधी गई है, लेकिन विपक्ष ने इस मुद्दे को तूल दे दिया है।
🧑⚖️ राजनीतिक प्रतिक्रिया और जनता में आक्रोश:
घोटाले की खबर सामने आने के बाद प्रदेश में राजनीतिक भूचाल आ गया है।
विपक्षी दलों ने मुख्यमंत्री से तत्काल दोषियों की गिरफ्तारी और निष्पक्ष जांच की मांग की है।
वहीं, आम जनता सवाल पूछ रही है कि जिन योजनाओं से गांवों को रोशनी मिलनी थी, वह पैसा अफसरों की जेब में कैसे पहुंच गया?
📌 प्रमुख सवाल जो अब भी बाकी हैं:
1. रानू साहू के अलावा किन अफसरों को पैसा मिला?
2. क्या इस भ्रष्टाचार में किसी राजनेता की भी भूमिका है?
3. DMF फंड की शेष राशि की जांच कब होगी?
4. क्या जनता को नुकसान की भरपाई मिलेगी?
DMF घोटाला सिर्फ एक अफसर की कहानी नहीं है, यह सिस्टम की नीयत और नीति दोनों पर सवाल खड़ा करता है। अगर दोषियों पर सख्त कार्यवाही नहीं हुई, तो आने वाले समय में जनता के लिए बनी हर योजना सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह जाएगी और भ्रष्टाचार की यह जड़ और गहरी होती जाएगी।

Author: Ritesh Gupta
Professional JournalisT