दंतेवाड़ा। आदिवासी विकास विभाग दंतेवाड़ा में बीते पांच सालों में सामने आए 18 करोड़ रुपये से अधिक के फर्जी टेंडर घोटाले ने जिले के साथ पूरे बस्तर संभाग को हिला दिया है। इस सनसनीखेज मामले में दो तत्कालीन सहायक आयुक्तों को तो पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है, लेकिन विभागीय लिपिक संजय कोड़ोपी अपराध दर्ज होने के 17 दिन बाद भी पुलिस की गिरफ्त से बाहर है। आरोपी की फरारी ने न केवल पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं, बल्कि इस घोटाले में किसी बड़े संरक्षण की संभावना को भी मजबूत कर दिया है।
दरअसल, वित्तीय वर्ष 2021-22 से 2025-26 तक विभाग की विभिन्न योजनाओं और डीएमएफ मद से स्वीकृत निर्माण कार्यों के लिए करीब 18 करोड़ रुपये का प्रावधान हुआ। नियम के मुताबिक इन निर्माण कार्यों के लिए अख़बारों में विज्ञापन प्रकाशित होना था या ऑनलाइन निविदा जारी करनी थी, लेकिन जांच में सामने आया कि नियमों को ताक पर रखकर प्रिंटिंग प्रेस के जरिए फर्जी विज्ञप्तियाँ छपवाई गईं और उन्हीं को असली दस्तावेज बताकर फाइलों में लगाया गया। इसके बाद मनचाही फर्मों को कार्य का आबंटन कर करोड़ों रुपये का बंदरबांट कर लिया गया।
कलेक्टर के आदेश पर वर्तमान सहायक आयुक्त राजू कुमार नाग ने 21 अगस्त को तत्कालीन सहायक आयुक्त आनंद जी सिंह, सेवानिवृत्त कल्याण सिंह मसराम और शाखा लिपिक संजय कोड़ोपी के खिलाफ कोतवाली थाने में एफआईआर दर्ज कराई। इसी आधार पर पुलिस ने 24 अगस्त की देर रात आनंद जी सिंह को जगदलपुर से और कल्याण सिंह मसराम को रायपुर से गिरफ्तार कर लिया। लेकिन तीसरा आरोपी संजय कोड़ोपी अब तक फरार है। मामले में दर्ज FIR में धारा 318(4), 338, 336(3), 340(2) और 61(2) के तहत अपराध पंजीबद्ध किया गया है।
जांच में अब तक 45 फर्जी टेंडरों की गड़बड़ी उजागर हुई है और आशंका जताई जा रही है कि कई अन्य फाइलों की जांच के बाद ठेकेदारों व अन्य अधिकारियों की भूमिका भी सामने आ सकती है। ऐसे में संजय कोड़ोपी की गिरफ्तारी बेहद अहम मानी जा रही है, क्योंकि उसके पास ऐसे कई राज़ हो सकते हैं जो घोटाले के असली सूत्रधारों तक पहुँच सकते हैं। यही वजह है कि यह सवाल लगातार उठ रहा है कि क्या सचमुच पुलिस ईमानदारी से उसकी तलाश कर रही है या फिर सिर्फ औपचारिकता निभाई जा रही है।
लोगों का कहना है कि यदि लिपिक संजय कोड़ोपी गिरफ्तार होता है तो न केवल दंतेवाड़ा बल्कि पूरे बस्तर संभाग और संभवत: प्रदेश के अन्य जिलों में भी टेंडर घोटालों के बड़े खुलासे हो सकते हैं। यह भी आशंका है कि निर्माण कार्यों के अलावा डीएमएफ और अन्य मदों से खरीदी गई सामग्रियों के टेंडरों में भी यही तरकीब अपनाई गई होगी। सवाल यह भी है कि आखिर इतने बड़े स्तर पर हुए फर्जीवाड़े से क्या तत्कालीन उच्चाधिकारी अनजान थे, या फिर किसी राजनीतिक संरक्षण की आड़ में यह खेल चलता रहा।
फिलहाल पूरा जिला इस बात पर नजर गड़ाए हुए है कि कब पुलिस फरार लिपिक को गिरफ्तार करती है। क्योंकि उसकी गिरफ्तारी से इस बहुचर्चित घोटाले की असली परतें खुलने की उम्मीद है और यह भी साफ हो सकेगा कि पांच साल तक करोड़ों रुपये के टेंडरों में इस स्तर का खेल आखिर किसके संरक्षण में चलता रहा।
Author: Ritesh Gupta
Professional JournalisT









