वन विभाग का नया खेल मनरेगा घोटाले का वही ठेकेदार फिर सक्रिय , अब मुनारा और रॉयल्टी से उठेगा पर्दा!
जीपीएम : – छत्तीसगढ़ के प्रशासनिक गलियारों में एक पुराना चलन खूब फल-फूल रहा है जांच चलती रहती है, और ठेके मिलते रहते हैं। वन विभाग इसका ताज़ा उदाहरण है, जहाँ वही ठेकेदार, जो मनरेगा निर्माण घोटाले में घिरा हुआ था, अब दोबारा विभाग के संरक्षण में सक्रिय हो गया है।
मनरेगा में कार्य एजेंसी थी वन विभाग –
मामला मनरेगा के तहत पुल–पुलिया निर्माण कार्यों से जुड़ा है, जहाँ कार्य एजेंसी खुद वन विभाग थी। इन निर्माणों में भारी वित्तीय अनियमितताओं की शिकायतें सामने आईं, और जाँच के दौरान कई फाइलें लोकपाल कार्यालय तक पहुँचीं। रिपोर्ट में स्पष्ट उल्लेख है कि मटेरियल सप्लाई, बिलिंग और भुगतान प्रक्रिया में गंभीर अनियमितताएँ पाई गईं।
ठेकेदार बॉबी शर्मा फर्म आराध्या बिल्डिंग मटेरियल सप्लायर –
इन निर्माणों की ज़िम्मेदारी जिस ठेकेदार पर थी, वह है बॉबी शर्मा,नजिसकी फर्म का नाम है आराध्या बिल्डिंग मटेरियल सप्लायर।लोकपाल जांच में पाया गया कि कई निर्माण कार्यों में माप पुस्तिकाएँ फर्जी,बिलों का हिसाब संदिग्ध, और सामग्री के उपयोग का कोई स्पष्ट प्रमाण मौजूद नहीं था। इसके बावजूद वन विभाग के कुछ अधिकारियों ने उसी ठेकेदार को नए निर्माण कार्यों में फिर से जिम्मेदारी सौंप दी। जाँच लंबित है, पर ठेके जारी हैं और सवाल वही है कि क्या विभाग की प्राथमिकता पारदर्शिता है या पारिवारिकता?
विभागीय संरक्षण पर उठे सवाल –
सूत्रों के मुताबिक, गौरेला रेंज कार्यालय से लेकर कुछ डिविजन स्तर के अधिकारी बॉबी शर्मा को लगातार संरक्षण दे रहे हैं। हर शिकायत को दबाने की प्रक्रिया अब नियमित कार्यशैली बन चुकी है। जिसे ब्लैकलिस्ट होना चाहिए था, वह विभाग का कृपापात्र ठेकेदार बन गया है। फाइलें जांच में हैं, पर भुगतान और ठेके दोनों चालू हैं।
वन विभाग में ठेकेदारी प्रथा –
जानकारों का कहना है कि वन विभाग में ठेकेदारी प्रथा का कोई प्रावधान नहीं था। विभाग अपने निर्माण कार्य विभागीय पद्धति से कराता था जिसमें पारदर्शिता, जिम्मेदारी और नियंत्रण तीनों तय थे। मगर बीते कुछ वर्षों में ठेकेदारी मॉडल ने जंगल विभाग को अंदर तक खोखला कर दिया है। विभागीय कार्यों में अब ठेकेदारों की पकड़ इतनी गहरी हो गई है कि जो कभी संरक्षक हुआ करता था, वही आज संरक्षित ठेकेदारों का विभाग बन गया है।
जीएसटी घोटाला –
सूत्रों का कहना है कि अगर आराध्या बिल्डिंग मटेरियल सप्लायर की वित्तीय फाइलें जीएसटी विभाग ने खंगालीं, तो एक बड़ा कर (GST) घोटाला उजागर हो सकता है। शक है कि कई फर्जी बिलों के ज़रिए माल-सप्लाई और टैक्स इनवॉइस में डबल एंट्री और गलत इनपुट क्रेडिट क्लेम किए गए हैं। अर्थात् फाइलें एक हाथ से बनीं, भुगतान दूसरे हाथ से हुआ।
मुनारा और रॉयल्टी घोटाले की आहट –
विश्वसनीय सूत्र बताते हैं कि यह सिर्फ शुरुआत है। मुनारा निर्माण घोटाला और रॉयल्टी घोटाला की फाइलें भी अब खुलने के कगार पर हैं। वन विभाग के अंदर यह वही चक्र है जहाँ एक ठेकेदार से दूसरे तक काम और कमाई दोनों बाँटी जाती हैं। आने वाले दिनों में इन प्रकरणों का विस्तृत खुलासा किया जाएगा, ताकि जनता जाने कि जंगल का बजट आखिर जंगल में नहीं, फाइलों में क्यों खत्म होता है।
मनरेगा घोटाले की गूँज और वन विभाग की भूमिका अब दो अलग-अलग बातें नहीं रहीं ये एक ही धागे से जुड़ी सच्चाई हैं। ऊपर से जांच की फाइलें चल रही हैं, नीचे से ठेकेदारों की जेबें भर रही हैं। और जब ठेके उसी के पास लौटें जिसके खिलाफ जांच हो रही है, तो यह किसी सिस्टम की गलती नहीं बल्कि उस सिस्टम की मौन स्वीकृति है। वन विभाग अगर सच में हरियाली बचाना चाहता है, तो सबसे पहले उसे अपने विभाग के भीतर उगी ठेकेदारी की बेलें काटनी होंगी।
Author: Ritesh Gupta
Professional JournalisT








