गौरेला-पेंड्रा-मरवाही। एक साल पहले की गई शिकायत, शासन को लाखों का नुकसान, और अब जाकर प्रशासन की आंख खुली — यह कहानी है जिला आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी डॉ. श्रीयता कुरोठे के खिलाफ गंभीर आर्थिक अनियमितताओं और सेवा शर्तों के उल्लंघन के मामले की, जो अब सवालों के घेरे में है।
डॉ. श्रीयता कुरोठे पर आरोप है कि उन्होंने अपने पद पर रहते हुए बिना विभागीय अनुमति के कई जमीनें खरीदीं, जिनमें से अधिकांश की रजिस्ट्री उनके पति जयवर्धन कुरोठे के नाम करवाई गई। इन भूमि लेन-देन में खुद को “गृहिणी” बताया गया ताकि सरकारी पद छुपाया जा सके। इसके बाद इन जमीनों पर बिना डायवर्सन और रेरा पंजीयन के अवैध प्लॉटिंग कर भोले-भाले लोगों से पैसे वसूले गए।सबसे गंभीर आरोप यह है कि आश्रय निधि के नाम पर, यानी EWS (आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग) के लिए लिए गए पैसों का इस्तेमाल निजी लाभ के लिए किया गया।
लाखों का नुकसान, और प्रशासन की चुप्पी
नगर निगम अधिनियम 1956 और कॉलोनाइजर रजिस्ट्रीकरण नियम 2013 के मुताबिक बिना अनुमति अवैध प्लॉटिंग करना गंभीर अपराध है, जिसमें 3 से 7 साल तक की सज़ा और संपत्ति राजसात करने का प्रावधान है। इसके बावजूद इस मामले में जिला प्रशासन ने चुप्पी साधे रखी। 2024 में ही इस संबंध में विस्तृत लिखित शिकायत की गई थी, लेकिन न तो कोई जांच हुई, न ही कोई कार्रवाई।
यह मामला लगभग एक साल तक जानबूझकर रोके रखा गया। 08 जुलाई 2025 को जब RTI के माध्यम से जांच रिपोर्ट की मांग की गई, तभी 14 जुलाई को आनन-फानन में SDM पेण्ड्रारोड द्वारा श्रीयता कुरोठे को नोटिस भेजा गया और 18 जुलाई को उपस्थित होने का निर्देश दिया गया।
क्या जांच रिपोर्ट की मांग नहीं होती तो मामला दफन ही रह जाता?
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि यह कार्रवाई तब शुरू हुई जब जांच रिपोर्ट की मांग की गई। इससे यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि यदि जानकारी सार्वजनिक रूप से न मांगी जाती, तो शायद यह मामला आज भी दबी हुई फाइलों में पड़ा होता। प्रश्न यह भी उठता है कि इतने संगीन आर्थिक अपराध और फर्जीवाड़े के बावजूद शासन ने एफआईआर दर्ज करने की दिशा में कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाया? क्या इस महिला अधिकारी को कोई राजनीतिक या प्रशासनिक संरक्षण प्राप्त है?
प्रशासन की निष्क्रियता या साजिश?
जिस समय में शासन को लाखों रुपये का सीधा नुकसान हुआ, EWS वर्ग को ठगा गया और सरकारी सेवा नियमों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई गईं, उस समय जिला प्रशासन की चुप्पी न सिर्फ चिंताजनक, बल्कि साजिशपूर्ण भी प्रतीत होती है।
सवाल अब शासन के सिर पर है — क्या इस गंभीर मामले में दोषियों पर वैधानिक कार्यवाही होगी? क्या डॉ. श्रीयता कुरोठे पर FIR दर्ज की जाएगी, या मामला एक बार फिर “नोटिस देकर इतिश्री” कर दिया जाएगा?
यह मामला सिर्फ एक महिला अधिकारी की व्यक्तिगत अनियमितताओं का नहीं, बल्कि पूरे प्रशासनिक तंत्र की लापरवाही और जवाबदेही से बचने की प्रवृत्ति का प्रतीक बन गया है। यदि अब भी कठोर कार्रवाई नहीं होती, तो यह उन सैकड़ों आम नागरिकों के साथ अन्याय होगा जो नियमों के पालन में अपनी पूरी ज़िंदगी खपा देते हैं।
यह रिपोर्ट “MPG न्यूज़” द्वारा जनहित में प्रकाशित।
✍ रितेश कुमार गुप्ता
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Author: Ritesh Gupta
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