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जीपीएम स्वास्थ्य विभाग का काला सच : टेक्नीशियन राहुल –अफसर गठजोड़ से हिला महकमा, फाइलें बनी कब्रिस्तान” सीएमएचओ भी बेबस, सचिव भी खामोश

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जीपीएम स्वास्थ्य विभाग : टेक्नीशियन–अफसर गठजोड़ से हिलता महकमा, फाइलें बनी कब्रिस्तान!
रायपुर/जीपीएम। छत्तीसगढ़ का जीपीएम जिला अब स्वास्थ्य घोटालों का दूसरा नाम बन गया है। करोड़ों की लूट सामने आने के बाद भी कार्रवाई ठंडी पड़ी है। छोटे कर्मचारियों पर औपचारिक नोटिस चस्पा कर खानापूर्ति हो रही है, लेकिन असली खिलाड़ी—एक रसूखदार लेब टेक्नीशियन और तीन-तीन सीएमएचओ—आज भी कुर्सियों पर मज़े में टिके हुए हैं।
अस्पतालों की हालत यह है कि वहां कबाड़ सजाकर अरबों के बिल पास कर दिए गए। पुराने कोविड अस्पताल से निकाले गए एसी को नया दिखाया गया, कागज़ी कंपनियों से बीपी और शुगर मशीन खरीदी गई, और आलमारी–कूलर तक बाज़ार भाव से तीन गुना दाम पर उठाए गए। नतीजा यह कि अस्पताल खुद बीमार हो चुका है, लेकिन फाइलों में सब “ऑल वेल” दर्ज है।

ट्रांसफर का खेल भी किसी घोटाले से कम नहीं। मंत्रालय से आदेश ज़रूर निकलते हैं, लेकिन जिले में तय होता है कि किसकी पोस्टिंग कहाँ होगी। जशपुर ट्रांसफर हुए ग्रामीण चिकित्सा अधिकारी इम्तियाज मंसूरी अब भी जीपीएम में डटे हुए हैं। यही हाल दर्जनों अफसरों और कर्मचारियों का है, जो मोटा चढ़ावा देकर अपनी कुर्सी बचाए बैठे हैं। आदेश मंत्रालय का, फैसला जिले के “सेटिंग माफिया” का।
और सबसे चौंकाने वाली तस्वीर है—जिन पर आरोप लगे, उन्हें पुरस्कृत किया गया। तत्कालीन सीएमएचओ नागेश्वर राव को महासमुंद जैसे बड़े जिले का जिम्मा दे दिया गया, प्रभात चंद्र प्रभाकर को मुंगेली भेजा गया और और एक अब भी जीपीएम में सिविल सर्जन की कुर्सी संभाले हुए हैं। साफ है कि जांच की जगह इनाम बांटे गए।
कलेक्टर कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं कि “फाइल ऊपर भेज दी”, संचालक रायपुर चिट्ठी-पत्री को दबा देते हैं और सचिवालय स्तर पर भी सब खामोशी है। यह खामोशी बताती है कि मामले की डोर कितनी ऊँचाई तक जुड़ी है और किस तरह पूरे सिस्टम ने खुद को बचाने की कवायद शुरू कर दी है।
इस बीच सबसे बड़ा नुकसान जनता का हुआ है। अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी है, दवाएं नदारद हैं, और जो उपकरण खरीदे गए वे फर्जी निकले। गरीब मरीज इलाज की उम्मीद में पहुंचते हैं, मगर हाथ में निराशा और धोखा मिलता है।

जीपीएम का यह मामला अब सिर्फ एक जिले की धांधली नहीं, बल्कि स्वास्थ्य महकमे में फैले भ्रष्टाचार को उजागर करता है। अगर इस बार भी जिम्मेदारों पर कार्रवाई नहीं हुई तो यह प्रकरण पूरे विभाग की सबसे काली कहानी के तौर पर दर्ज होगा।
Ritesh Gupta
Author: Ritesh Gupta

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