बिलासपुर। भारतमाला परियोजना फर्जीवाड़े में आरोपी बनाए गए और हाल ही में निलंबित किए गए पटवारी सुरेश कुमार मिश्रा ने आत्महत्या कर ली। शुक्रवार दोपहर को उनकी लाश बहन के फार्म हाउस में फांसी के फंदे पर झूलती मिली। आत्महत्या से पहले उन्होंने सुसाइड नोट भी लिखा, जिसमें खुद को निर्दोष बताया और बड़े अधिकारियों पर साजिशन फंसाने का आरोप लगाया। घटना सकरी थाना क्षेत्र के जोकी गांव की है, जहां उनकी बहन सरस्वती दुबे का फार्महाउस स्थित है। मृतक पटवारी सुरेश मिश्रा 30 जून को रिटायर होने वाले थे। कुछ दिन पहले ही भारतमाला परियोजना में मुआवजा घोटाले के चलते उन्हें निलंबित किया गया था।
दोपहर 1 बजे लगाई फांसी, कमरा था भीतर से बंद
सकरी थाना प्रभारी प्रदीप आर्य के अनुसार, शुक्रवार दोपहर करीब 1 बजे सुरेश मिश्रा ने फांसी लगाई। कमरा भीतर से बंद था और उनकी लाश पंखे से रस्सी के सहारे लटकी हुई मिली। मौके पर पहुंची पुलिस ने दरवाजा तोड़ा और शव को अपने कब्जे में लिया। लाश को पोस्टमॉर्टम के लिए भेजा गया है।
सुसाइड नोट में लिखा— “मैं दोषी नहीं हूं”
पुलिस को मौके से सुसाइड नोट भी मिला है, जिसमें सुरेश मिश्रा ने लिखा— “मैं दोषी नहीं हूं। मुझे साजिश के तहत फंसाया गया है।” उन्होंने स्पष्ट रूप से बड़े अधिकारियों पर जानबूझकर फंसाने का आरोप लगाया है और खुद को बेगुनाह बताया है। पुलिस अब सुसाइड नोट की जांच कर रही है।
SP बोले— जांच के बाद होगी आगे की कार्रवाई
मामले में बिलासपुर एसपी रजनेश सिंह ने कहा कि पटवारी की आत्महत्या की जानकारी मिली है। सुसाइड नोट की जांच की जा रही है और उसमें लिखे तथ्यों के आधार पर ही आगे की कार्रवाई की जाएगी।
क्या है भारतमाला परियोजना फर्जीवाड़ा मामला?
भारतमाला परियोजना के तहत बिलासपुर-उरगा राष्ट्रीय राजमार्ग के लिए किए गए भूमि अधिग्रहण में फर्जी दस्तावेजों के आधार पर मुआवजा स्वीकृत किए जाने का मामला सामने आया था। ढेका गांव में अधिग्रहीत भूमि के नामांतरण और बंटवारे में गड़बड़ी की गई। जांच में पाया गया कि राजस्व रिकॉर्ड में कूटरचना कर कुछ नए नाम अवैध रूप से जोड़े गए थे, जिससे मुआवजा की राशि गलत ढंग से बढ़ाई गई।
सरकार को हुआ करोड़ों का नुकसान
जिला स्तरीय जांच समिति की रिपोर्ट में तत्कालीन तहसीलदार डीएस उइके और पटवारी सुरेश मिश्रा की भूमिका को संदिग्ध पाया गया। इसी आधार पर दोनों के खिलाफ FIR दर्ज की गई। इस घोटाले के चलते मुआवजा वितरण की प्रक्रिया भी ठप है और शासन को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा है।
हाल ही में हुआ था निलंबन
पटवारी सुरेश मिश्रा की तैनाती ढेका गांव में थी, जहां से यह पूरा मामला जुड़ा है। मामले के उजागर होने के बाद उन्हें तखतपुर अटैच किया गया और फिर कलेक्टर ने उन्हें निलंबित कर दिया।
यह घटना एक बार फिर सवाल खड़े करती है कि क्या जांच और कार्रवाई की प्रक्रिया इतनी पारदर्शी है कि मानसिक तनाव में आकर कोई अधिकारी ऐसा खौफनाक कदम न उठाए। साथ ही, सुसाइड नोट में लगाए गए आरोपों की निष्पक्ष जांच होना भी जरूरी है ताकि सच सामने आ सके। ✍ रिपोर्ट: रितेश कुमार गुप्ता📍 Lallanguru News, बिलासपुर

Author: Ritesh Gupta
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