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कोरबा के जंगलों में लूट की हरियाली! कैम्पा मद में करोड़ों का घोटाला, सात अफसर दोषी…वसूली तय! लेकिन FIR से डर क्यों?

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कोरबा: कागजों में हरियाली, ज़मीन पर बंजर – पौधारोपण में करोड़ों का खेल उजागर, सात अफसर दोषी करार, वसूली तय लेकिन FIR से परहेज
कोरबा: जिले में वन विभाग द्वारा किए गए पौधारोपण कार्य में करोड़ों की अनियमितता सामने आई है। डीएफओ जांच में खुलासा हुआ कि कैम्पा मद से स्वीकृत राशि में भारी घोटाला हुआ, जिसमें सात अधिकारियों को दोषी माना गया है। इनसे कुल 45 लाख 32 हजार रुपए की वसूली की अनुशंसा की गई है, लेकिन अब तक किसी के खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं की गई है। सवाल उठ रहे हैं कि प्रशासन क्यों दोषियों को कानूनी संरक्षण दे रहा है?
लल्लनगुरु ने इस मामले को जुलाई 2024 में सबसे पहले उजागर किया था। उसके बाद यह मामला लगातार सुर्खियों में रहा। प्रारंभिक लीपापोती की कोशिशों के बाद जांच का आदेश दिया गया। पाली एसडीओ चंद्रकांत टिकरिहा के नेतृत्व में जांच दल का गठन किया गया, जिसकी रिपोर्ट के अनुसार मौके पर पौधारोपण की हालत बेहद खराब पाई गई।
2019-20 में कैम्पा मद से 10 करोड़ रुपये की योजना स्वीकृत की गई थी, जिसमें 265 हेक्टेयर क्षेत्र में पौधारोपण कर उसकी देखरेख 10 वर्षों तक की जानी थी। लेकिन जिस ज़मीन पर पौधे लगाने की बात कही गई थी, वहां न तो पूरा रकबा मौजूद था और न ही ज़मीन खाली थी। अतिक्रमित ज़मीनों को भी कागज़ों में पौधारोपण स्थल बता दिया गया। स्थिति यह रही कि पौधे लगे ज़मीन का नक्शा और वास्तविकता पूरी तरह मेल नहीं खा रहे। जांच में सामने आया कि मात्र 20 से 30 प्रतिशत पौधे ही जीवित हैं।
88000 पौधे लगाए गए थे, जिनमें सागौन, नीम, करंज, आंवला, जामुन जैसी प्रजातियां शामिल थीं। लेकिन फेंसिंग अधूरी रही, पंप खराब हो चुके हैं, और जिन कर्मियों को सुरक्षा की जिम्मेदारी दी गई थी, उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया। इतना ही नहीं, बिना बिजली कनेक्शन के 21 बोर खनन करा दिया गया, जिसमें भी अनियमितता उजागर हुई।
घोटाले में तत्कालीन एसडीओ एआर बंजारे, रेंजर धर्मेन्द्र चौहान, वनपाल एसएस तिवारी सहित सात लोगों से वसूली की सिफारिश की गई है, लेकिन अभी तक प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई है। इस चुप्पी ने पूरे मामले पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। शासन को भेजी गई जांच रिपोर्ट के बावजूद कार्रवाई केवल वसूली तक सीमित है, जबकि मामला स्पष्ट रूप से आपराधिक प्रकृति का है।
कोरबा की यह हकीकत बताती है कि कागज़ों में हरियाली और ग्राउंड पर बंजर ज़मीन — यही है ‘कैम्पा’ की असलियत। करोड़ों की राशि खर्च होने के बाद भी अगर 80 फीसदी पौधे मर चुके हैं, तो यह सिर्फ लापरवाही नहीं, बल्कि संगठित घोटाले की पराकाष्ठा है। प्रशासन यदि अब भी आंखें मूंदे बैठा है, तो यह साफ है कि संरक्षण ऊपर से मिल रहा है।
यह सवाल अब जनता का है:
क्या दोषियों पर मुकदमा चलेगा या उन्हें वसूली की आड़ में बरी कर दिया जाएगा? क्या कैम्पा मद से हरियाली के नाम पर हर साल चल रहे ‘सिस्टमेटिक लूट’ पर कोई नकेल कसेगा?
– रितेश गुप्ता,
Ritesh Gupta
Author: Ritesh Gupta

Professional JournalisT

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