मरवाही के नायब तहसीलदार रमेश कुमार ने हड़ताल से खुद को किया अलग, बोले – जब अन्याय हुआ तब संगठन मौन क्यों था?
मरवाही/गौरेला-पेंड्रा-मरवाही | 28 जुलाई 2025; छत्तीसगढ़ कनिष्ठ प्रशासनिक सेवा संघ शाखा इकाई गौरेला द्वारा 28 जुलाई को घोषित हड़ताल को लेकर मरवाही के नायब तहसीलदार रमेश कुमार ने विरोध दर्ज करते हुए एक कड़ा संदेश प्रशासन और संगठन दोनों को भेजा है। उन्होंने कलेक्टर को पत्र लिखकर न केवल हड़ताल से खुद को अलग किया, बल्कि यह भी स्पष्ट कर दिया कि यह आंदोलन स्वार्थ से प्रेरित है और विधि के विरुद्ध है।
📄 “जब मुझे 15 में से सिर्फ 2 हल्कों की जिम्मेदारी दी गई, तब संगठन ने क्या किया?”
नायब तहसीलदार रमेश कुमार ने अपने पत्र में सवाल उठाया है कि जब वे अकेले पूरे मरवाही तहसील के अधिकांश कामकाज को संभाल रहे थे, जब उन्हें मात्र दो हल्कों में सीमित कर दिया गया था, तब यही प्रशासनिक सेवा संघ उनके साथ न्याय के लिए खड़ा क्यों नहीं हुआ?
उन्होंने लिखा –
“मैं विगत 10 वर्षों से शपथपूर्वक और निष्ठा से अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर रहा हूँ। जब मुझे मरवाही में 15 में से मात्र 2 हल्कों की पदस्थापना दी गई और बाकी कार्यों का भार भी मुझ पर ही रहा, तब संघ ने मेरे ‘न्याय पक्ष’ में क्या किया?”
❌ हड़ताल को बताया विधि विरुद्ध और स्वार्थ प्रेरित
रमेश कुमार ने यह भी उल्लेख किया कि उन्हें हड़ताल की सूचना 28 जुलाई को दोपहर 12:30 बजे प्राप्त हुई। परंतु उनका स्पष्ट मत है कि इस प्रकार की हड़तालें न केवल शासकीय दायित्वों के विरुद्ध हैं, बल्कि इनमें व्यक्तिगत स्वार्थ की बू आती है। उनका मानना है कि “The soul being a fragment of GOD is immortal”, और वे अपने कर्म को पूजा मानते हैं। इसलिए उन्होंने शासकीय कार्यों से अनुपस्थित न रहते हुए दायित्वों के निर्वहन की प्रतिबद्धता जताई।
इसीलिए उन्होंने इस हड़ताल से स्वयं को पूरी तरह से अलग कर लिया है।
🧭 कर्तव्यनिष्ठा या अकेलेपन की सजा?
रमेश कुमार की यह चिट्ठी अब केवल एक प्रशासनिक दस्तावेज नहीं रही, बल्कि एक बड़ा सवाल बन गई है — क्या एक ईमानदार और कर्मठ अधिकारी को इसलिए अकेले कार्य करना पड़ेगा क्योंकि वह संगठनात्मक राजनीति से दूर है?
उनकी चुप्पी अब एक शब्द बन चुकी है — और यह शब्द है विरोध, जो शोर नहीं मचाता… पर झकझोर ज़रूर देता है।

Author: Ritesh Gupta
Professional JournalisT