“ऑक्सीजन जोन के बीच ज़हर: पेंड्रा में दम तोड़ती प्रकृति और मौन चीखती गौमाता”
📍 स्थान: पेंड्रा, ज़िला गौरेला-पेंड्रा-मरवाही, छत्तीसगढ़
पेंड्रा नगर का इंदिरा उद्यान, जिसे नगर का ‘ऑक्सीजन जोन’ कहा जाता है, आज अपनी हरियाली से नहीं बल्कि बगल में फैले कचरे के ढेरों और मरणासन्न गायों से पहचाना जा रहा है। कभी शांति और स्वच्छता का प्रतीक रहा यह इलाका अब एक खुले डंपिंग ग्राउंड में बदल चुका है — और इसके जिम्मेदार हम ही हैं।
जहां एक ओर उद्यान के ठीक पास मुक्तिधाम स्थित है — एक पवित्र स्थान — वहीं दूसरी ओर उससे सटे मुख्य मार्ग पर नगर का संपूर्ण कचरा खुले में फेंका जा रहा है, मानो यह जगह किसी व्यवस्था की नहीं, लापरवाही की प्रतीक बन चुकी हो।
गायों की मौतें और प्लास्टिक की त्रासदी
हर दिन यहां कचरे में प्लास्टिक ढूंढती गायें दम तोड़ रही हैं। हाल ही में तीन गायों की मौत के बाद स्थानीय लोगों ने देखा कि वे प्लास्टिक और गंदगी के ढेर में पड़ी थीं — कुछ तो कचरे में दब गईं, और किसी को पता भी नहीं चला। ये दृश्य सिर्फ दर्दनाक नहीं, बल्कि मानवता पर एक सवाल हैं।
चिकन सेंटर से निकला अपशिष्ट: एक नया खतरा
सड़क के किनारे कई चिकन सेंटरों से निकला अवशेष भी खुले में फेंका जा रहा है। इस बदबूदार कचरे पर अब बड़ी संख्या में आवारा कुत्तों का जमावड़ा रहने लगा है। स्कूल जाने वाले बच्चों के लिए यह एक स्थायी खतरा बन चुका है — कई बार कुत्तों के झुंड ने राह चलते लोगों पर हमला भी किया है।
जनप्रतिनिधियों की चुप्पी — सबसे बड़ी लापरवाही
पेंड्रा जैसे सुंदर नगर में यह सब हो रहा है — और जनप्रतिनिधि मौन हैं। क्या यह प्रशासन की नाकामी नहीं है? क्या यह प्रकृति, पशु और नागरिकों के प्रति जिम्मेदारी का पूरी तरह त्याग नहीं है?
प्रश्न यह नहीं कि कचरा क्यों है — प्रश्न यह है कि हम कब तक चुप रहेंगे?
> प्रकृति रो रही है, गायें मर रही हैं, बच्चे खतरे में हैं — और हम सब बस देख रहे हैं।
अब समय आ गया है कि पेंड्रा नगर की जनता इस अन्याय के खिलाफ एकजुट होकर आवाज़ उठाए। क्योंकि यह सिर्फ सफाई का मुद्दा नहीं — यह संवेदनशीलता, ज़िम्मेदारी और जीवन का मुद्दा है।

Author: Ritesh Gupta
Professional JournalisT