गौरेला-पेंड्रा-मरवाही। आरक्षण नीति और सामाजिक न्याय की जड़ें हिलाने वाला एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। आदिवासी विभाग में पदस्थ शंकर लाल वस्त्रकार पर आरोप है कि उन्होंने फर्जी अनुसूचित जाति (SC) प्रमाणपत्र बनवाकर न केवल सरकारी नौकरी हथियाई, बल्कि सालों तक पदोन्नति और वेतन-भत्तों का लाभ भी उठाया।
शिकायतकर्ता ने बिलासपुर संभागायुक्त को भेजे पत्र में साफ कहा है कि शंकर लाल ने खुद को “महार” जाति का बताते हुए SC प्रमाणपत्र प्रस्तुत किया, जबकि हकीकत यह है कि छत्तीसगढ़ में महार जाति को अनुसूचित जाति का दर्जा 4 सितंबर 2023 को मिला है। इससे पहले यह जाति अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) में आती थी। इसके बावजूद उन्होंने फर्जी प्रमाणपत्र बनवाकर नियुक्ति पाई और सरकारी सिस्टम को गुमराह किया। शिकायत में कहा गया है कि यह सिर्फ व्यक्तिगत धोखाधड़ी नहीं, बल्कि प्रशासनिक नियुक्ति प्रणाली में घुसा हुआ एक गहरा भ्रष्टाचार है। अगर यह प्रमाणपत्र फर्जी साबित होता है तो यह भारतीय दंड संहिता के तहत साफ तौर पर धोखाधड़ी और कूट रचना का मामला है। विभागीय स्तर पर यह कहकर बचाव किया जा रहा है कि वस्त्रकार की सेवा को 10 साल से अधिक हो गए हैं, इसलिए अब कार्रवाई नहीं हो सकती, लेकिन यह तर्क न सिर्फ हास्यास्पद है बल्कि कानून, नैतिकता और आरक्षण नीति की मूल भावना के खिलाफ है।
शिकायतकर्ता ने मांग की है कि मामले की SIT या लोकायुक्त से जांच कराई जाए, वस्त्रकार की नियुक्ति को तत्काल शून्य घोषित कर सेवा समाप्त की जाए, अब तक प्राप्त सभी वेतन-भत्तों की वसूली हो, फर्जी प्रमाणपत्र के आधार पर हुई पदोन्नति रद्द की जाए और प्रमाणपत्र जारी करने वाले अधिकारियों-कर्मचारियों पर भी कठोर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए। इस प्रकरण ने प्रशासन की कार्यप्रणाली, आरक्षण के दुरुपयोग और भ्रष्टाचार के गठजोड़ पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। अब देखना यह है कि क्या संभागायुक्त और उच्च अधिकारी इस मामले में त्वरित और कठोर कार्रवाई कर आरक्षण व्यवस्था की गरिमा को बचा पाएंगे, या फिर यह मामला भी कागजों में दबकर रह जाएगा।

Author: Ritesh Gupta
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