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सरकारी तंत्र को बना लिया निजी जागीर —नाम है — रवि जोगी कुजूर, पद — पटवारी, और पहचान? माफिया/दलाल ?या दस्तावेजों का सौदागर?

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पटवारी की कलम से लूट ली सरकारी ज़मीन… फर्जीवाड़े का खुला खेल, मगर प्रशासन अब भी मौन!
गौरेला-पेंड्रा-मरवाही। जिले का राजस्व अमला आज एक ऐसे व्यक्ति की करतूत से शर्मसार है, जिसने सरकारी तंत्र को अपनी निजी जागीर बना डाला है। नाम है — रवि जोगी कुजूर, पद — पटवारी, और पहचान? अब यही कि यह व्यक्ति दस्तावेज़ों का सौदागर बन चुका है।
ताज़ा मामला मरवाही तहसील के चंगेरी रा.नि.मं. सिवनी का है, जहां रवि कुजूर ने खसरा नंबर 3046/3048, रकबा 4.56 एकड़ की शासकीय भूमि को निजी घोषित कर रजिस्ट्री करवा दी। यह भूमि स्पष्ट रूप से सरकारी थी, लेकिन पटवारी ने अपने भू-माफिया साथियों के साथ मिलकर दस्तावेजों में खेल कर डाला और फिर उसे बेच भी दिया।
इस अपराध में अकेला रवि कुजूर ही नहीं, बल्कि रजिस्ट्री कार्यालय के अधिकारी, विशेष रूप से रजिस्टार आलोक अग्रवाल, भी संदेह के घेरे में हैं। आरोप है कि पूरी रजिस्ट्री प्रक्रिया मिलीभगत से अंजाम दी गई। और सबसे बड़ी बात — अब तक ना कोई एफआईआर, ना गिरफ्तारी, और ना ही कोई सख्त प्रशासनिक प्रतिक्रिया। सब कुछ खुलेआम, लेकिन प्रशासन खामोश।
मगर ये पहला मामला नहीं है।
इसी पटवारी ने कुछ साल पहले पेंड्रा रोड तहसील के कोटखर्रा, मेढुका, पिपरिया, और पड़खुरी गांवों में जंगल मद की सरकारी ज़मीन को सीधे अपने दो सहायकों के नाम दर्ज करवा दिया था। न अनुमति, न प्रक्रिया, न जांच — सीधा जंगल को कागज़ों से उड़ा दिया और उसे निजी घोषित कर, बैंक से ऋण तक ले लिया गया।
शिकायत हुई, जांच हुई, गड़बड़ी साबित हुई — लेकिन नतीजा? सिर्फ दिखावटी निलंबन। और कुछ महीनों बाद उसी आरोपी को बहाल कर दिया गया, जैसे कोई गुनाह ही न हुआ हो। सबसे बड़ा अपराध यह है कि आज तक वह ज़मीन फिर से शासकीय रिकॉर्ड में बहाल नहीं की गई है। यानी ज़मीन भी हड़पी हुई है, और आरोपी फिर से राजस्व की ज़िम्मेदारी संभाले बैठा है।
तो सवाल यह नहीं है कि रवि कुजूर ने क्या किया — सवाल यह है कि उसे करने दिया किसने?क्या उसे दोबारा मौका देने वाला प्रशासन दोषमुक्त है? क्या ज़मीन लूटने के बाद भी उसे बहाल करने वाली मशीनरी आज भी ईमानदार है?क्या सबूतों के बावजूद एफआईआर न होना प्रशासनिक निष्क्रियता नहीं, बल्कि संरक्षण नहीं है?
यह केवल भ्रष्टाचार नहीं — यह अपराध है। और इसे दबाना, खुद अपराध को पोषित करना है। अब वक़्त है — सिर्फ निलंबन नहीं, गिरफ्तारी हो। एफआईआर हो। रजिस्ट्री कार्यालय की पूरी जांच हो। दोषियों को बर्खास्त कर जेल भेजा जाए।?वरना अगली बार ज़मीन आपकी होगी — और उस पर नाम रवि कुजूर के आदमी का।
अब मौन रहना भी अपराध है।
Saket Verma
Author: Saket Verma

A professional journalist

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