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उत्तम खूंटे बना रेत माफिया का ‘सरगना’, सतीश जायसवाल ‘वसूली सम्राट’! कटघोरा से रेलवे तक फैला सिंडिकेट, शासन की छाया में पुष्पा स्टाइल अवैध कारोबार✍🏻 रिपोर्ट: रितेश कुमार गुप्ता चीफ एडिटर, लल्लनगुरु न्यूज़

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कोरबा/कटघोरा। छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में रेत कारोबार अब महज अवैध धंधा नहीं रहा, यह अब एक सुनियोजित संगठित अपराध और प्रशासनिक गठजोड़ का खुला उदाहरण बन चुका है। इस अवैध साम्राज्य की कमान संभाल रहे हैं — खनिज विभाग के सहायक संचालक उत्तम खूंटे, और फील्ड ऑपरेशन को अंजाम दे रहा है उनका सबसे भरोसेमंद दलाल — सतीश जायसवाल, जिसे अब इलाके में ‘साहब का राइट हैंड’ कहा जाने लगा है।
🔥 पुष्पा स्टाइल माफिया मॉडल — प्रशासन के संरक्षण में खुला खेल
कटघोरा के पुछापारा, जुराली, डुडगा, धवईपुर और कसरेंगा क्षेत्रों में अहिरन नदी का सीना हर रोज जेसीबी और हाइवा मशीनें चीर रही हैं। यहाँ अवैध खनन, बिना परमिट रेत परिवहन, प्रति वाहन अवैध वसूली, और पर्यावरण को गहरे स्तर पर नुकसान — इन चार अपराधों का एक सुनियोजित चक्र चल रहा है।
संपूर्ण गतिविधि को चलाने में सतीश जायसवाल की भूमिका अहम है —
> वह न तो विभागीय अधिकारी है, न संविदाकर्मी, फिर भी कटघोरा के घाटों पर वह ‘निजी खनिज अफसर’ जैसा बर्ताव करता है।
असल में वह उत्तम खूंटे का राइट हैंड और भरोसेमंद वसूली दलाल है।
📊 रेत का काला कारोबार: हर दिन करोड़ों की कमाई
रोजाना ट्रैक्टरों की संख्या: 200–300
प्रति ट्रैक्टर अवैध वसूली: ₹500–₹700
रोजाना की कुल वसूली: ₹1.5 से ₹2 लाख
मासिक अनुमान: ₹4–₹6 करोड़ तक
इस कमाई का बड़ा हिस्सा सीधे खनिज विभाग के अफसरों की जेब में जाता है। सवाल यह है कि जब सब कुछ खुलेआम हो रहा है, तो प्रशासन क्यों मौन है?
सतीश जायसवाल — ‘बिना पद’ का माफिया मैनेजर, अब खुद कारोबारी भी!
कटघोरा क्षेत्र में खनिज विभाग का कोई अधिकारिक पद न होने के बावजूद सतीश जायसवाल आज सबसे प्रभावशाली और भयमुक्त चेहरा बन चुका है।
वह उत्तम खूंटे का राइट हैंड ही नहीं, बल्कि अब इस पूरे अवैध रेत कारोबार का सीधा लाभार्थी भी बन चुका है।
👉 सूत्रों से पुष्टि हुई है कि सतीश जायसवाल के पास खुद की एक हाईवा और तीन ट्रैक्टर हैं, जिनके माध्यम से वह प्रतिदिन अवैध रूप से रेत की आपूर्ति करता है।
वह न सिर्फ वसूली तंत्र का मैनेजर है, बल्कि खुद वित्तीय हिस्सेदार भी है।
> यानी “सरकारी रसूख” का इस्तेमाल कर, वह अपना निजी धंधा भी चमका रहा है — वह भी बिना खनन लायसेंस, बिना परिवहन अनुमति और बिना किसी वैध प्रक्रिया के।
यही कारण है कि घाटों पर उसे देखकर कोई सवाल नहीं करता — उसका ट्रैक्टर नहीं पकड़ा जाता, न उसकी हाईवा रोकी जाती है।
वह पूरे तंत्र का ‘प्रोटेक्टेड माफिया’ बन चुका है।
🌊 अहिरन नदी: रेत माफिया की नई राजधानी
पुछापारा, जुराली, डुडगा, धवईपुर, कसरेंगा — इन गाँवों की अहिरन नदी अब रेत माफिया के लिए सोने की खान बन चुकी है। रात-दिन मशीनों से अवैध खनन होता है, जिससे नदी की जैव विविधता, जलस्तर और किनारों का अस्तित्व खतरे में है।
पर्यावरणीय कानूनों और सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों की खुलेआम धज्जियाँ उड़ रही हैं।
🚉 अब रेलवे भी बना शिकार
चौंकाने वाली बात यह है कि अब यह अवैध रेत सीधे रेलवे परियोजनाओं तक पहुंच रही है।
बिना वैध स्वीकृति और पर्यावरणीय क्लीयरेंस के यह रेत रेलवे निर्माण कार्यों में उपयोग हो रही है, जिससे स्पष्ट होता है कि अब माफिया सरकारी योजनाओं तक में सेंध लगाने में सफल हो चुका है।
❓ शासन मौन क्यों?
क्या खनिज विभाग में बैठे अधिकारी अब माफिया के एजेंट बन चुके हैं?
क्या उत्तम खूंटे को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है?
क्या खनिज मंत्री और जिला प्रशासन इस गठजोड़ की जानकारी होते हुए भी आंखें मूंदे हुए हैं?
अगर जवाब “नहीं” है, तो बड़ी कार्रवाई अब तक क्यों नहीं हुई?
🚨 जब विभाग ही माफिया बन जाए, तो जनता कहां जाए?
यह सिर्फ अवैध खनन की रिपोर्ट नहीं — यह एक जन-संघर्ष का दस्तावेज़ है।
कटघोरा से उठी ये आवाज़ अब रायपुर के दरवाज़ों पर दस्तक दे रही है:
> क्या खनिज विभाग मुख्यमंत्री से ऊपर हो गया है?
क्या वर्दीधारी अधिकारी अब दलालों के माध्यम से अवैध वसूली चलाते रहेंगे?
और सबसे बड़ा सवाल — शासन अब भी चुप क्यों है?
अब वक्त आ गया है कि राज्य सरकार इस पूरे सिंडिकेट पर सीधी, तेज़ और निष्पक्ष कार्रवाई करे।
Ritesh Gupta
Author: Ritesh Gupta

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