गौरेला–पेंड्रा–मरवाही को जिला बने वर्षों हो गए, लेकिन हालात यह है कि मरवाही आज भी मूलभूत स्वास्थ्य सुविधाओं से जूझ रहा है। कांग्रेस प्रवक्ता वीरेंद्र सिंह बघेल ने कहा कि अफसोस की बात है कि जिला बनने के बाद भी बदलाव सिर्फ शहर और कुछ आसपास के गांवों तक ही सीमित रहा, जबकि जंगलों के बीच रहने वाले आदिवासी समुदायों का जीवन अब भी दयनीय है।
उन्होंने कहा कि धनवार, बैगा और गोंड़ जैसे विशेष जनजातीय समुदाय आज भी दो वक्त की रोटी और इलाज जैसी बुनियादी ज़रूरतों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। न अच्छी सड़क है, न पक्का घर, और जब कोई बीमार पड़ता है तो पास में स्वास्थ्य सुविधा भी उपलब्ध नहीं होती। ज़रूरत पड़ने पर लोगों को अपने बनाए पगडंडियों से आठ से दस किलोमीटर तक पैदल चलकर मुख्य सड़क तक पहुँचना पड़ता है। अचानक किसी को आपातकालीन स्वास्थ्य सेवा की ज़रूरत हो जाए तो सोचिए उस स्थिति में परिवार कितना विवश और लाचार हो जाता होगा।
बघेल ने टिपकापानी, चाकाडांड़, गंवरखोज और धौराठी जैसे गांवों का ज़िक्र करते हुए कहा कि यहाँ तक पहुँचना आज भी बेहद मुश्किल है। कई बार प्रसव जैसी स्थिति घर पर ही करनी पड़ती है या फिर मरीज को बाँस की स्ट्रेचर पर डालकर कई किलोमीटर जंगल से बाहर लाना पड़ता है। यह स्थिति बताती है कि विकास का असली लाभ अब तक इन गांवों तक नहीं पहुँच पाया है।
उन्होंने सवाल उठाया कि जब लोकतंत्र हर नागरिक को समान अधिकार देता है और गांव का हर परिवार चुनाव में वोट डालता है, तो फिर सुविधाओं की बात आते ही वे खुद को हमेशा ठगा हुआ क्यों महसूस करते हैं। आखिर इतने वर्षों बाद भी मूलभूत सुविधाओं में इतने पिछड़े क्यों हैं हम?
कांग्रेस प्रवक्ता ने मांग की कि मरवाही अस्पताल को हाईटेक और सर्वसुविधा युक्त बनाया जाए, ताकि यहां के लोगों को रेफरल सेंटर पर भेजे जाने की मजबूरी से निजात मिल सके। उनका कहना था कि यह जरूरी है कि स्वास्थ्य सुविधा का लाभ सीधे मरवाही के अंतिम छोर तक बैठे आदिवासी भाई-बहनों तक पहुँचे, तभी सच्चे मायनों में विकास की परिभाषा पूरी होगी।
Author: Ritesh Gupta
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