—“छोटा कर्मचारी बना करोड़ों का भू-माफिया: अफसर पत्नी की आड़ में जयवर्धन का भ्रष्टाचार साम्राज्य, अब तक क्यों चुप है प्रशासन?”
गौरेला-पेण्ड्रा-मरवाही: एक समय वन विभाग का मामूली कर्मचारी—आज जीपीएम जिले में करोड़ों की जमीन का सौदागर! हम बात कर रहे हैं जयवर्धन उर्फ मनीष कुरोठे की, जिसने सरकारी नौकरी की आड़ में न केवल अवैध संपत्ति खड़ी की, बल्कि स्वास्थ्य विभाग में पदस्थ अपनी पत्नी डॉ. श्रीयता कुरोठे की मदद से शासन को खुली चुनौती दी है।
जयवर्धन की कहानी एक आम कर्मचारी से सिस्टम के भीतर पलने वाले ‘सफेदपोश माफिया’ की कहानी बन चुकी है। अमरकंटक वन परिक्षेत्र कार्यालय में बतौर छोटा कर्मचारी अपनी सेवाएं देने वाले जयवर्धन ने पहले वन अधिकारियों से सांठगांठ कर ‘नंबर दो’ के पैसों को जमीन कारोबार में लगाया और फिर लगातार अवैध डीलिंग करते हुए पूरे जीपीएम जिले में भू-माफिया के रूप में उभरा।
पत्नी की पद और पदोन्नति बनी ढाल:
जयवर्धन के इस नेटवर्क को मजबूत किया उसकी पत्नी डॉ. श्रीयता कुरोठे ने, जो स्वास्थ्य विभाग में आयुर्वेद चिकित्सक हैं। सूत्रों के अनुसार, विभागीय भ्रष्टाचार से प्राप्त कालेधन को जयवर्धन के रजिस्ट्री नेटवर्क में खपाया गया और शासकीय तंत्र की आंखों में धूल झोंकते हुए कई एकड़ जमीन, प्लॉट, दुकानें और मकान खरीदे गए। वन विभाग से त्यागपत्र देने के बाद भी जयवर्धन आज पूरी तरह सक्रिय है — अब वह खुलेआम रियल एस्टेट कारोबारी के रूप में सरकारी संरक्षण में जमीनों की दलाली और अवैध खरीद-फरोख्त कर रहा है।
अब बड़ा सवाल: क्यों चुप है शासन?
क्या शासन को करोड़ों की बेनामी संपत्ति नहीं दिख रही?क्या जांच एजेंसियां इस गोरखधंधे से अंजान हैं?क्यों अब तक ईओडब्ल्यू, एसीबी या जिला प्रशासन ने इसकी संपत्ति को राजसात करने की प्रक्रिया शुरू नहीं की?
इस पूरे मामले में जब तक डॉ. श्रीयता कुरोठे को स्वास्थ्य विभाग से बर्खास्त कर उनके और पति के खिलाफ आर्थिक अपराध शाखा (EOW) से जांच नहीं करवाई जाती, तब तक यह मान लेना होगा कि शासन-प्रशासन की चुप्पी में भी कोई ‘साठगांठ’ छिपी है।
जनता की मांग:
1. जयवर्धन कुरोठे की पूरी संपत्ति की राजस्व, आयकर और ईडी जांच कर राजसात किया जाए।
2. डॉ. श्रीयता कुरोठे को तत्काल सेवा से बर्खास्त कर स्वास्थ्य विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार की जांच हो।
3. पूरे प्रकरण को लोकायुक्त व न्यायिक जांच के दायरे में लाया जाए।
यह मामला अब सिर्फ एक ट्रांसफर विवाद नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ के अंदर ‘सिस्टम के भीतर पलते सत्ता सिंडिकेट’ का काला चेहरा बन चुका है। यदि अब भी प्रशासन नहीं जागा, तो आम जनता का भरोसा शासन से उठ जाएगा।

Author: Ritesh Gupta
Professional JournalisT