मरवाही (जिला गौरेला-पेंड्रा-मरवाही)। मरवाही वनमंडल के मरवाही वन परिक्षेत्र अंतर्गत ग्राम दानीकुंडी की वन नारंगी भूमि पर अवैध कब्जा दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है। वन विभाग की ओर से दिनांक 09 जून 2025 को अतिक्रमणकारियों को “अंतिम नोटिस” जारी कर 15 दिन की चेतावनी दी गई थी। स्पष्ट रूप से कहा गया था कि यदि तय समय सीमा के भीतर कब्जा नहीं हटाया गया, तो बलपूर्वक बेदखली की जाएगी और संबंधित धाराओं के तहत कार्रवाई होगी।
लेकिन 15 दिन तो दूर, अब एक महीना बीत चुका है, और स्थिति जस की तस है। न कब्जा हटा, न कार्रवाई हुई, और न ही विभाग की कोई मंशा ज़मीन पर दिखाई दी। इससे पहले विभाग ने वर्ष 2022 में भी दो बार नोटिस जारी किए थे, जिनका हश्र भी यही हुआ।
दानीकुंडी की यह भूमि राज्य सरकार के वन विभाग के स्वामित्व वाली आरक्षित वन नारंगी श्रेणी की भूमि है। इस पर किसी भी तरह की खेती, निर्माण, निवास या स्थायी ढांचे की अनुमति नहीं है। फिर भी इस भूमि पर 30 से अधिक पक्के मकान खड़े कर दिए गए हैं, जिनमें कई मकान ऐसे हैं जिनके अंदर तक मुनारे (सीमा स्तंभ) और पेड़ मौजूद हैं।
स्थानीय जांच और फोटो दस्तावेज़ बताते हैं कि वन विभाग द्वारा की गई फेंसिंग को तोड़कर कब्जा किया गया है, और उसी तार से कब्जे के घेराव की जा रही है। पेड़ों की गर्डलिंग (छाल उतार कर मारना) की गई है, और कई स्थानों पर पेड़ों की कटाई भी हो चुकी है। जलनिकासी के लिए बनी सिरपिट्टी संरचनाएं भी कब्जे में ले ली गई हैं।
वन विभाग का रवैया इस पूरे मामले में हैरान कर देने वाला है। विभाग के पास सारे साक्ष्य, मौका मुआयना, कब्जे की सूची और कानून मौजूद है — फिर भी विभाग केवल कागज़ों में ही सक्रिय है। जो “अंतिम नोटिस” दिया गया, वह भी अब औपचारिकता से अधिक कुछ नहीं लग रहा।
जिन 10 व्यक्तियों को यह अंतिम नोटिस जारी किया गया है, उनके नाम इस प्रकार हैं:
नारायण प्रसाद, गुलाब सिंह, सोहेल खान, हीरामानिक पूरी, नत्थू लाल गुप्ता, सुषमा साहू, लालचंद केशरवानी, जवाहरलाल रैदास, हेमप्रकाश धीरही और मनमोहन साहू।
स्थानीय ग्रामीणों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं का आरोप है कि विभाग और कब्जाधारियों के बीच मौन सौदेबाज़ी चल रही है। जब सरकारी भूमि पर पेड़ों को काटकर पक्के मकान बना लिए जाएं और विभाग तीन साल से सिर्फ नोटिस भेजता रहे, तो यह सामान्य लापरवाही नहीं — बल्कि व्यवस्थित संरक्षण प्रतीत होता है।
भारतीय वन अधिनियम, 1927 की धारा 80(ए), 29, 32 और 33 के तहत वन भूमि पर कब्जा, पेड़ काटना, निर्माण करना गंभीर आपराधिक अपराध है। इसमें 3 वर्ष तक की सजा, जुर्माना, और अवैध निर्माण का तत्काल ध्वस्तीकरण का प्रावधान है। फिर भी आज तक न एक भी प्राथमिकी दर्ज की गई, न ही कोई बेदखली की गई।
प्रश्न अब केवल वन विभाग की निष्क्रियता का नहीं है, बल्कि यह साबित करने का है कि क्या सरकारी जंगल अब सिर्फ कागज़ों में ही सुरक्षित हैं? क्या दानीकुंडी का जंगल भी सत्ता-प्रशासन की अनदेखी में माफियाओं के हवाले कर दिया गया है? यदि अब भी कार्रवाई नहीं होती, तो यह साफ माना जाएगा कि वन विभाग खुद इस अपराध का सहभागी बन चुका है — और दानीकुंडी की हरियाली की हत्या में उसकी भी बराबर की भूमिका है।
Author: Saket Verma
A professional journalist









