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Gaurela pendra Marwahi:फर्जी जाति प्रमाणपत्र पर बना बाबू, फिर खुद को दिलाया प्रमोशन! ट्राइबल विभाग में आदिवासी अस्मिता से खुला खिलवाड़

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गौरेला-पेंड्रा-मरवाही। जिले के ट्राइबल विभाग में आदिवासी आरक्षण और अस्मिता से जुड़ा एक बड़ा फर्जीवाड़ा उजागर हुआ है। वर्षों से आदिवासी समाज के अधिकारों पर डाका डाल रहे फर्जी जाति प्रमाणपत्रधारी बाबुओं को न सिर्फ संरक्षण मिला, बल्कि उन्हें प्रमोशन देकर मुख्यालय में पदस्थ भी कर दिया गया है। इस मामले ने आदिवासी समाज को झकझोर दिया है और प्रशासनिक तंत्र की संवेदनहीनता को बेनकाब कर दिया है।
मुख्य आरोपी महेश धनवार—खुद ही बना प्रमोशन अफसर!
सूत्रों के मुताबिक, महेश धनवार नामक कर्मचारी की नियुक्ति अनुकंपा आधार पर हुई थी, लेकिन उनके पिता का जाति प्रमाणपत्र पहले ही फर्जी साबित हो चुका है। विभागीय जांच में स्वयं महेश का आदिवासी प्रमाणपत्र भी फर्जी करार दिया गया था। इसके बावजूद, न बर्खास्तगी हुई, न ही निलंबन—बल्कि उन्हें उसी कार्यालय में पदोन्नति देकर बैठा दिया गया, जहां वे एक दशक से जमे हैं।
खुद की बनाई सूची, खुद का प्रमोशन!
और तो और, सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि महेश धनवार ने खुद प्रमोशन प्रक्रिया की जिम्मेदारी संभाली और खुद का नाम, साथ ही शंकर वस्त्रकार का नाम पदोन्नति सूची में जोड़ दिया। यह सीधे तौर पर “खुद ही चौकीदार, खुद ही चोर” जैसी स्थिति को दर्शाता है।
शंकर वस्त्रकार का दोहरा खेल
शंकर वस्त्रकार नामक कर्मचारी की नियुक्ति OBC वर्ग से भृत्य पद पर हुई थी, लेकिन बाद में उन्होंने SC प्रमाणपत्र के आधार पर बाबू पद पर प्रमोशन पा लिया। यह साफ तौर पर जातिगत आरक्षण का दोहन और संविधान के साथ खिलवाड़ है।
कलेक्टर और सहायक आयुक्त की चुप्पी—या मिलीभगत?
इतने गंभीर आरोपों और फर्जीवाड़े की खुली जानकारी होने के बावजूद, जिला प्रशासन ने दोनों को प्रमोशन देकर मुख्यालय में पदस्थ कर दिया। इससे स्पष्ट होता है कि यह कोई मामूली भूल नहीं, बल्कि अधिकारियों की मिलीभगत और अंदरखाने हुए लेनदेन का नतीजा है।
आदिवासी समाज का आक्रोश—‘हमारे अधिकारों पर डाका’
आदिवासी संगठनों का कहना है कि जिन बाबुओं को तत्काल बर्खास्त करना चाहिए था, उन्हें प्रमोशन देना आदिवासी अस्मिता, अधिकार और आरक्षण व्यवस्था के साथ सरासर धोखा है। उन्होंने इस मामले की उच्चस्तरीय जांच की मांग की है और चेतावनी दी है कि यदि दोषियों पर कार्रवाई नहीं हुई, तो उग्र आंदोलन छेड़ा जाएगा।
अब सवाल यह है…
क्या ट्राइबल विभाग में आदिवासी होने की बजाय फर्जीवाड़ा ही प्रमोशन की योग्यता बन चुका है?
क्या जिम्मेदार अफसर जानबूझकर इस फर्जीवाड़े पर परदा डाल रहे हैं?
कब तक आदिवासी समाज को उनके ही अधिकारों से वंचित किया जाएगा?
हम नहीं रुकेंगे
हम इस घोटाले की परत-दर-परत जांच करेंगे।
हम जनता और आदिवासी समाज की आवाज बनेंगे।
हम ऐसे हर फर्जीवाड़े को उजागर करेंगे—क्योंकि यह सिर्फ भ्रष्टाचार नहीं, आदिवासी अस्मिता पर हमला है।
अब या तो कार्रवाई होगी, या आदिवासी समाज उग्र आंदोलन के लिए तैयार रहेगा!
Ritesh Gupta
Author: Ritesh Gupta

Professional JournalisT

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