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बैगा आदिवासियों का पक्का घर खा गया सिस्टम – ठेकेदार मालामाल, प्रशासन बेहाल!” गबनकर्ता पर FIR कब

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छत्तीसगढ़ में बैगा आदिवासी के अधूरे सपने पर सियासत और सिस्टम की साजिश!
6 साल से अधूरा पड़ा पीएम आवास, भ्रष्ट ठेकेदार आज़ाद और प्रशासन मौन!
गौरेला-पेंड्रा-मरवाही। छत्तीसगढ़ के संरक्षित जनजाति बैगा समुदाय के लिए सरकारें बड़े-बड़े दावे करती हैं, लेकिन ग्राम पंचायत धनौली स्थित छुईलापानी बैगापारा में रहने वाले केशलाल बैगा और उनकी पत्नी भादिया बाई की टूटी उम्मीदें और अधूरा मकान इस व्यवस्था की असली तस्वीर उजागर करता है। प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) के अंतर्गत 6 साल पहले स्वीकृत हुआ घर आज भी अधूरा है—और अब उसकी जर्जर दीवारें सिर्फ बारिश नहीं, सिस्टम की लानत से भी गिरने को हैं।
पूरा पैसा हजम, घर अधूरा – कौन है दोषी?
जानकारी के अनुसार, गौरेला के एक ठेकेदार ने योजना की पूरी राशि का आहरण कर लिया, लेकिन मकान अधूरा छोड़कर रफूचक्कर हो गया। ये वही पैसा था, जो सरकार ने बैगा जैसे संवेदनशील और बेहद जरूरतमंद परिवारों के लिए स्वीकृत किया था। लेकिन आज 2025 में भी केशलाल बैगा एक पक्के घर के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जबकि जिम्मेदार ठेकेदार खुलेआम घूम रहा है।
जनपद पंचायत सीईओ की चुप्पी – साजिश या सहमति?
इस घोटाले से भी ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि जनपद पंचायत गौरेला के वर्तमान सीईओ की भूमिका भी अब संदेह के घेरे में है। विभागीय सूत्रों के अनुसार, न सिर्फ ठेकेदार को बचाया जा रहा है, बल्कि चुपके से अधूरे मकान का निर्माण कार्य पूरा करने की साजिश रची जा रही है, ताकि इस पूरे फर्जीवाड़े पर परदा डाला जा सके। सवाल उठता है—क्या सीईओ ठेकेदार के साथ मिलीभगत कर रहे हैं? क्या गरीब आदिवासी की जिंदगी से बड़ा हो गया है ठेकेदार का मुनाफा?
FIR क्यों नहीं? कब होगा न्याय?
सरकारी योजना की राशि का गबन एक गंभीर आपराधिक कृत्य है। फिर भी, अब तक ठेकेदार के खिलाफ FIR तक दर्ज नहीं की गई। 6 साल तक इस भ्रष्टाचार पर आंखें मूंदे बैठा प्रशासन अब उसे ढंकने की कोशिश कर रहा है। ये सिर्फ एक निर्माण नहीं, यह एक आदिवासी के सम्मान, अधिकार और न्याय के सपने को कुचलने की साजिश है।
क्या बैगा आदिवासी सिर्फ चुनावी घोषणाओं का हिस्सा हैं?
PMAY जैसी योजनाएं सिर्फ कागजों में दिखें और ज़मीन पर बैगा समुदाय जैसे लोग इंतजार में तड़पते रहें, तो यह लोकतंत्र नहीं—भ्रष्ट तंत्र है। यह न केवल सरकार की योजनाओं की विफलता है, बल्कि संवेदनशील जनजातियों के प्रति व्यवस्था की असंवेदनशीलता का शर्मनाक उदाहरण भी है।
छुईलापानी बैगापारा का अधूरा मकान एक प्रतीक बन चुका है—लापरवाही का, भ्रष्टाचार का और एक आदिवासी परिवार के साथ हुए अन्याय का।
अब सवाल सरकार और प्रशासन से है—
क्या केशलाल बैगा को कभी उनका पक्का घर मिलेगा?
क्या दोषी ठेकेदार को सजा मिलेगी?
क्या जनपद सीईओ पर जांच होगी?
या फिर यह मामला भी अन्य फाइलों की तरह धूल फांकता रहेगा?
अब समय है कार्रवाई का—not just compensation, but accountability!
Ritesh Gupta
Author: Ritesh Gupta

Professional JournalisT

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