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“शिकायत पहले, कार्रवाई नहीं — शासकीय सेवा की आड़ में कुरोठे दंपत्ति ने खड़ा किया भ्रष्टाचार का अड्डा”

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शासकीय सेवा की आड़ में करोड़ों की अवैध कमाई — डॉ. श्रीयता और जयवर्धन कुरोठे का प्लॉटिंग घोटाला बेनकाब
📍 गौरेला-पेंड्रा-मरवाही से विशेष रिपोर्ट
जिले में पदस्थ रही आयुर्वेद चिकित्सक डॉ. श्रीयता कुरोठे और उनके पति जयवर्धन कुरोठे द्वारा शासकीय सेवा की मर्यादा को ताक पर रखकर अवैध प्लॉटिंग, फर्जी दस्तावेज़, और नियमों के खुल्ले उल्लंघन का बड़ा मामला उजागर हुआ है। यह जोड़ा न केवल शासन की आंखों में धूल झोंककर बिना अनुमति सरकारी नियमों का दमन कर रहा है, बल्कि सरकार को राजस्व के लाखों रुपये का नुकसान पहुंचाकर कानून और व्यवस्था का मज़ाक भी बना रहा है।
डॉ. श्रीयता कुरोठे ने अपने पदस्थापना जिले में ही रहते हुए विभागीय अनुमति लिए बिना भूमि क्रय कर उसे टुकड़ों में प्लॉटिंग कर बेचा। भूमि क्रय के समय उन्होंने खुद को “गृहिणी” बताकर अपने शासकीय पद को छुपाया और फर्जी दानपत्र के ज़रिए ज़मीन को अपने पति जयवर्धन कुरोठे के नाम किया गया। इसके बाद जयवर्धन कुरोठे के नाम से अवैध प्लॉटिंग कर उसे कई लोगों को बेचा गया — न RERA में पंजीयन, न कॉलोनाइज़र लाइसेंस, न डायवर्शन और न ही ले-आउट की स्वीकृति। पूरी योजना पूर्व नियोजित थी और इसका मकसद शासन व आमजन दोनों को ठगना था।
इस अवैध प्लॉटिंग से शासन को न सिर्फ भारी राजस्व हानि हुई, बल्कि आश्रय निधि (EWS) जैसी योजनाओं के लिए निर्धारित पैसा भी निजी हित में डकार लिया गया। उन्होंने भूमि उपयोगिता को कृषि से आवासीय में बदले बिना निर्माण करवाया और सरकार के कोष को सीधे नुकसान पहुंचाया। जमीनों के खरीदी-बिक्री से डॉ. श्रीयता को करोड़ों रुपये का मुनाफा हुआ, लेकिन इसका कोई ब्यौरा उन्होंने ना आयकर विभाग को दिया और ना ही विभागीय संपत्ति विवरण में दर्ज किया — यानी पूरी प्रक्रिया पूर्णतः अवैध और धोखाधड़ीपूर्ण थी।
चौंकाने वाली बात यह है कि इससे पहले भी इनके खिलाफ शिकायतें की गई थीं, परंतु प्रशासनिक चुप्पी और कार्यवाही के अभाव में इनके हौसले इतने बुलंद हो गए कि इन्होंने अवैध कॉलोनी खड़ी कर दी। यह न सिर्फ भ्रष्टाचार का जीता-जागता उदाहरण है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि प्रशासनिक उदासीनता कैसे अपराधियों के हौसले बढ़ा देती है।
क़ानून साफ कहता है कि शासकीय सेवकों को किसी भी अचल संपत्ति की क्रय/विक्रय से पहले विभागीय अनुमति लेनी होती है, लेकिन डॉ. श्रीयता ने ना केवल इस नियम की अवहेलना की, बल्कि खुद को पेशा ‘गृहिणी’ बताकर दस्तावेजों में झूठ भी लिखा। यह छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (आचरण) नियम 1965 के घोर उल्लंघन के अंतर्गत आता है। साथ ही, नगर निगम अधिनियम 1956 और कॉलोनाइज़र नियम 2013 के अनुसार, अवैध प्लॉटिंग पर 3 से 7 साल तक की सज़ा और संपत्ति की जब्ती का भी प्रावधान है।
अब सवाल यह है — क्या शासन और प्रशासन ऐसे मामलों में चुप्पी साधे बैठे रहेंगे? क्या डॉ. श्रीयता कुरोठे जैसी अधिकारी को सिर्फ इसलिए बख्शा जाएगा क्योंकि वे पद पर थीं? या फिर कानून का डंडा हर उस व्यक्ति पर चलेगा जो जनता और शासन दोनों के साथ धोखा कर रहा है।
Ritesh Gupta
Author: Ritesh Gupta

Professional JournalisT

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