-“आदिवासी मुख्यमंत्री के राज में आदिवासी अफसर का अपमान! डॉ. श्रीयता और उसके माफिया पति पर क्यों मौन है शासन? कांग्रेस ने दी आंदोलन की चेतावनी”
गौरेला-पेण्ड्रा-मरवाही। छत्तीसगढ़ में आदिवासी मुख्यमंत्री होने के बावजूद, एक आदिवासी अधिकारी को कार्यालय में घुसकर धमकाया जाता है, जातिगत अपमान किया जाता है, और अब तक दोषियों के खिलाफ सिर्फ दिखावटी एफआईआर — क्या यही है आदिवासी सशक्तिकरण का सच? डॉ. कैलाश सिंह मरकाम, जो कि गौरेला जिला आयुष कार्यालय में प्रभारी अधिकारी हैं, उन्हें शासकीय आदेश का पालन करने की “सज़ा” इस रूप में दी गई कि डॉ. श्रीयता कुरोठे और उनके माफिया पति जयवर्धन कुरोठे कार्यालय में घुसकर सार्वजनिक तौर पर उन्हें धमकाते हैं, गाली-गलौज करते हैं, कुर्सी छोड़ने की धमकी देते हैं, और कहतें हैं —
“तुम आदिवासी हो तो क्या हुआ? तुमको देख लूंगा, कुर्सी भी छीन लूंगा।”
ईस घिनौने और जातिगत घमंड से भरे हमले के खिलाफ अब कांग्रेस पार्टी की आदिवासी शाखा भी मैदान में कूद चुकी है। — कांग्रेस आदिवासी मोर्चा का ऐलान – “अब संघर्ष होगा!”
जिलाध्यक्ष विशाल उरेती ने साफ शब्दों में कहा:
> “जब आदिवासी मुख्यमंत्री के शासन में ही आदिवासी अधिकारियों का सम्मान सुरक्षित नहीं, तो फिर इस सरकार का नैतिक आधार क्या बचा है?”
“डॉ. श्रीयता और उसका भ्रष्ट पति खुलेआम सरकार को चुनौती दे रहे हैं, और शासन अब तक कान में तेल डालकर बैठा है। यह चुप्पी अब आदिवासी समाज नहीं सहेगा।”
उरेती ने चेतावनी दी है कि यदि 72 घंटे के भीतर दोषियों पर कड़ी कार्रवाई नहीं हुई तो कांग्रेस पार्टी के आदिवासी कार्यकर्ता पूरे जीपीएम जिले में जंगी आंदोलन करेंगे — कार्यालय घेराव, चक्का जाम और मुख्यमंत्री निवास तक मार्च किया जाएगा। –क्या आदिवासी सिर्फ वोट बैंक बनकर रह गए हैं?
पूरे प्रदेश में यह सवाल तेजी से उठ रहा है —
क्या आदिवासी अफसरों को सिर्फ चुनावों के समय याद किया जाता है?
क्या सिस्टम अब भी उन्हीं पुराने सामंती सोच वालों के अधीन है जो कुर्सियों को ‘पैदाइशी हक’ समझते हैं? इस पूरे प्रकरण में एक तरफ एक ईमानदार आदिवासी अफसर है, जिसने नियमों का पालन किया। दूसरी तरफ है एक भ्रष्ट अफसर दंपत्ति, जिन्होंने पद और पहुंच का दुरुपयोग किया। और इनके बचाव में खड़ा है शासन की रहस्यमयी चुप्पी।
अब सिर्फ कार्रवाई नहीं, न्याय की मांग है
कांग्रेस आदिवासी मोर्चा की मांगें:
डॉ. श्रीयता कुरोठे को तत्काल बर्खास्त किया जाए
जयवर्धन कुरोठे की संपत्ति को राजसात कर ईडी और EOW से जांच कराई जाए
आदिवासी अधिकारी के अपमान को SC/ST अत्याचार अधिनियम के तहत लिया जाए
जिले के जिम्मेदार अफसरों की भूमिका की भी जांच हो — किसके संरक्षण में पल रहा था यह भ्रष्टाचार? यदि शासन अब भी मौन रहा, तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि यह सिर्फ अफसर दंपत्ति की दबंगई नहीं, बल्कि शासन की सहमति से चल रहा सत्ता सिंडिकेट है।

Author: Ritesh Gupta
Professional JournalisT