CG: कोरबा और गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिलों में सरकारी जमीन की हेराफेरी और कुटरचना का मामला उजागर हुआ है, जिसने प्रशासन और कानून व्यवस्था की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। कोरबा जिले के पोंडी उपरोड़ा क्षेत्र में सरकारी जमीन पर बड़े पैमाने पर साजिशपूर्वक हेराफेरी की गई। लालपुर और घुचांपुर ग्रामों में कुल 13.629 हेक्टेयर सरकारी जमीन को पटवारी और उनके सहयोगियों ने निजी व्यक्तियों के नाम पर दर्ज कर बैंकों से करोड़ों रुपये का ऋण हड़प लिया। इस खुलासे के बाद कलेक्टर ने FIR दर्ज कर संबंधित व्यक्तियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए।
वहीं गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले में वही पटवारी रवि जोगी कुजूर, जिसने पेंड्रा रोड तहसील के गांवों – कोटखर्रा, मेढुका, पिपरिया, पड़खुरी और खन्ता – में सरकारी जंगल की जमीनों में फर्जीवाड़ा किया, साजिशपूर्वक जमीन दर्ज कर बैंक से ऋण प्राप्त किया, इसके बावजूद बच निकला। निलंबन के बाद उसे पुनः बहाल कर दिया गया। लेकिन एफआईआर नहीं हुआ
यह दोहरे मानक और प्रशासनिक भेदभाव का ज्वलंत उदाहरण है। कोरबा में FIR दर्ज कर सख्त कार्रवाई हुई, वहीं पेंड्रा-मरवाही में वही अपराध करने वाले को संरक्षण और बहाली दी गई। राजनीतिक दबाव, प्रशासनिक उदासीनता और मिलीभगत ने कानून और न्याय को पूरी तरह ताक पर रख दिया। कोरबा और पेंड्रा-मरवाही दोनों ही मामलों में स्पष्ट है कि सरकारी जमीन की हेराफेरी और पटवारी की मिलीभगत केवल व्यक्तिगत अपराध नहीं, बल्कि साजिश और कुटरचना का हिस्सा थी। इस पूरे प्रकरण से भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला और नागरिकों में प्रशासन और न्याय व्यवस्था के प्रति गहरा अविश्वास पैदा हुआ।
अंततः यह मामला यह दर्शाता है कि सरकारी जमीन और राजस्व रिकॉर्ड की सुरक्षा के लिए कठोर निगरानी की आवश्यकता है। समान अपराध के लिए अलग-अलग कार्रवाई केवल प्रशासनिक भेदभाव और राजनीतिक प्रभाव को उजागर करती है।
Author: Ritesh Gupta
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