पर्यावरणीय अपराध का भंडाफोड़ – वन संपदा की हत्या में रेंजर मनीष सिंह और डिप्टी रेंजर ऊषा सोनवानी की घिनौनी मिलीभगत उजागर!
कटघोरा: पसान वनपरिक्षेत्र के लैंगा, लोकहड़ा, के जंगलों में इन दिनों पर्यावरणीय अपराध का नया अध्याय खुल चुका है। राजस्थान से हजारों भेड़, ऊंट, बकरी और घोड़े अवैध रूप से लाकर जंगल में चराए जा रहे हैं। करोड़ों रुपए से किया गया पौधारोपण चरवाहियों के हवाले कर जंगल की हरियाली की हत्या की जा रही है। यह आपराधिक खेल महीनों से जारी था, लेकिन वन परिक्षेत्र अधिकारी मनीष सिंह और डिप्टी रेंजर ऊषा सोनवानी सहित अन्य जिम्मेदार अधिकारी मोटी रकम लेकर मूकदर्शक बने हुए थे।
कल जब इस सनसनीखेज मामले की खबर प्रकाशित हुई, तो पसान रेंज में जैसे भूकंप आ गया। रेंजर मनीष सिंह आनन-फानन में खानाबदोश चरवाहियों को जंगल से खदेड़ने का दिखावटी कदम उठा रहे हैं ताकि अपनी मिलीभगत को छुपाया जा सके। उन्होंने बेपरवाही से कहा कि उन्हें इतने काम होते हैं कि वे जंगल में हर वक्त नहीं रह सकते, साथ ही यह कहते हुए पल्ला झाड़ा कि उन्हें इस आपराधिक गतिविधि की कोई जानकारी नहीं थी। यह न तो असली बेबसी थी, न प्रशासनिक कमजोरी, बल्कि जानबूझकर पल्ला झाड़ने की घिनौनी रणनीति थी ताकि खुद को दोषमुक्त दिखाया जा सके।
डिप्टी रेंजर ऊषा सोनवानी ने भी शर्मसार करते हुए कहा कि उनके पास इतने काम हैं कि वे हर वक्त जंगल में नहीं रह सकतीं। यह वक्तव्य प्रशासन की उदासीनता और भ्रष्टाचार का बेबाक प्रमाण बन चुका है। वन नियम स्पष्ट रूप से कहते हैं कि बिना अनुमति किसी भी प्रकार के पशु को वन क्षेत्र में प्रवेश करने की इजाजत नहीं दी जा सकती, फिर यह कैसे संभव हुआ कि हजारों भेड़-ऊंट जंगल में चरते रहे?
पर्यावरणीय विनाश की तस्वीर भयावह है। करोड़ों रुपए के पौधारोपण की धज्जियां उड़ चुकी हैं, हजारों भेड़-ऊंट बर्बादी का सबूत बनकर जंगल में चर रहे हैं और वन विभाग की चुप्पी साफ तौर पर मिलीभगत की गवाही दे रही है। अब हर नागरिक के जेहन में एक ही सवाल गूंज रहा है – क्या रेंजर मनीष सिंह और डिप्टी रेंजर ऊषा सोनवानी की मिलीभगत पर कड़ी कार्रवाई होगी? कब तक यह पर्यावरणीय लूट-खसोट जारी रहेगी?
स्थानीय समाज एवं पर्यावरणविद इस पूरे मामले की निष्पक्ष जांच की सख्त मांग कर रहे हैं। यदि समय रहते कठोर कार्यवाही नहीं की गई, तो यह मामला बड़े घोटाले में बदल जाएगा। वन संपदा केवल सरकारी जिम्मेदारी नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों का अमूल्य अधिकार है। यह लड़ाई अब हर नागरिक की बन चुकी है। भ्रष्टाचारियों को बेनकाब कर वन संपदा की रक्षा करना होगा। रेंजर मनीष सिंह और डिप्टी रेंजर ऊषा सोनवानी पर तत्काल सख्त कार्रवाई होनी चाहिए, अन्यथा यह कांड शासन व्यवस्था की शर्मनाक झलक बनकर रह जाएगा।

Author: Ritesh Gupta
Professional JournalisT