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छत्तीसगढ़ विधानसभा में गूंजेगी मेडिकल कैशलेस सुविधा की मांग! राज्य के पांच लाख कर्मचारियों और उनके परिवारों के लिए जीवन रेखा बनेगी यह योजना, संगठन की मेहनत लाई रंग

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रायपुर।छत्तीसगढ़ में 14 जुलाई से शुरू हो रहे विधानसभा सत्र में एक बार फिर प्रदेश के लाखों शासकीय कर्मचारियों की सबसे महत्वपूर्ण मांग—मेडिकल कैशलेस सुविधा—पर गंभीर चर्चा होने जा रही है। यह मुद्दा अब विधानसभा के पटल तक पहुंच चुका है और इसके पीछे है छत्तीसगढ़ मेडिकल कैशलेस कर्मचारी कल्याण संघ की लम्बी लड़ाई और सतत प्रयास।
संघ ने बीते महीनों में प्रदेशभर में मुहिम चलाकर लगभग सभी विधायकों को ज्ञापन सौंपा, जिससे जनप्रतिनिधियों का समर्थन मिला। अब वैशाली नगर विधायक रिकेश सेन ने इस मुद्दे पर विधानसभा में तारांकित प्रश्न लगाया है। इसके अलावा विधायक उत्तरी गणपत जांगड़े एवं खल्लारी विधायक द्वारकाधीश यादव ने भी इस विषय को सदन में उठाने की तैयारी कर ली है।
—क्या है मेडिकल कैशलेस सुविधा की मांग?
छत्तीसगढ़ के लगभग 5 लाख शासकीय कर्मचारी और उनके परिवार सालों से चिकित्सा सुविधा के बेहतर विकल्प की मांग कर रहे हैं। वर्तमान व्यवस्था में कर्मचारियों को इलाज का खर्च खुद उठाना पड़ता है और फिर मेडिकल प्रतिपूर्ति (रीइम्बर्समेंट) के लिए लंबी और जटिल प्रक्रिया से गुजरना होता है।
संघ के संरक्षक राकेश सिंह बताते हैं कि गंभीर बीमारियों में कर्मचारियों को अक्सर भारी भरकम रकम खर्च करनी पड़ती है। इलाज के लिए कर्मचारी कर्ज लेते हैं, गहने गिरवी रखते हैं या बच्चों की पढ़ाई की पूंजी तक खर्च करनी पड़ती है। उसके बाद प्रतिपूर्ति के लिए महीनों तक फाइलें दौड़ाई जाती हैं, लेकिन 100% खर्च की भरपाई नहीं होती—कई मामलों में केवल 40-50% राशि ही वापस मिलती है।
–अन्य राज्यों में पहले से है सुविधा
छत्तीसगढ़ मेडिकल कैशलेस कर्मचारी कल्याण संघ की अध्यक्ष उषा चंद्राकर ने बताया कि मध्यप्रदेश, गुजरात, उत्तरप्रदेश और केरल जैसे राज्यों में मेडिकल कैशलेस योजनाएं पहले से लागू हैं। मध्यप्रदेश सरकार ने हाल ही में अपने कर्मचारियों के लिए 20 लाख रुपए तक की कैशलेस इलाज सुविधा की घोषणा की है।
इसके अलावा, केंद्र सरकार के उपक्रम जैसे भिलाई स्टील प्लांट और एसईसीएल में भी कर्मचारियों को स्मार्ट कार्ड के माध्यम से पूर्णत: कैशलेस इलाज की सुविधा प्राप्त है। ऐसे में छत्तीसगढ़ के कर्मचारी यह सवाल उठा रहे हैं कि जब अन्य राज्यों और संस्थानों में यह सुविधा संभव है, तो फिर यहां क्यों नहीं?
—विपक्ष और सत्ता पक्ष से मिला समर्थन
संघ के पदाधिकारियों ने भाजपा प्रदेश अध्यक्ष किरण सिंह देव एवं नेता प्रतिपक्ष चरणदास महंत से भी मुलाकात की। दोनों नेताओं ने आश्वस्त किया कि यह मांग पूरी तरह से न्यायोचित है और वे इसे सदन में गंभीरता से उठाएंगे। संगठन का दावा है कि सरकार द्वारा इस सत्र में इस पर कोई ठोस घोषणा भी की जा सकती है।
संघ के प्रदेश संयोजक पियूष गुप्ता ने बताया कि अब कर्मचारियों को उम्मीद है कि यह मांग अब सिर्फ कागजों में नहीं, बल्कि जमीन पर उतरकर उन्हें वास्तविक राहत दिलाएगी।
–कर्मचारियों की आवाज – “यह सिर्फ सुविधा नहीं, हमारी जरूरत है”
मौजूदा समय में महंगाई, स्वास्थ्य सेवाओं की ऊंची लागत और इलाज में आने वाली असुविधा के बीच कर्मचारी वर्ग बेहद दबाव में है। कई कर्मचारियों ने बातचीत में कहा कि “आज के दौर में लगभग हर परिवार में एक बीमार व्यक्ति है। इलाज का खर्च मानसिक और आर्थिक रूप से तोड़ देता है। अगर शासन यह सुविधा देता है, तो हम शासन के सच्चे सिपाही बनकर पहले से बेहतर सेवा दे सकेंगे।”
—संगठन का स्पष्ट प्रस्ताव – आयुष्मान योजना से अलग हो यह व्यवस्था
संघ का कहना है कि यह योजना आयुष्मान भारत जैसी सामान्य सार्वजनिक योजना से पूरी तरह भिन्न होनी चाहिए। यह केवल राज्य के शासकीय कर्मचारियों और उनके परिवारों के लिए एक विशेष कार्ड आधारित व्यवस्था हो, जिससे इलाज के समय उन्हें पैसा न जुटाना पड़े।
–क्या होगी अगली कड़ी?
अब प्रदेशभर के कर्मचारी यह उम्मीद लगाए बैठे हैं कि इस बार सरकार उनकी वर्षों पुरानी, जायज और मानवीय मांग को गंभीरता से लेते हुए विधानसभा सत्र के दौरान या तुरंत बाद इसपर निर्णय लेगी। संगठन ने इसे “जीवन रेखा योजना” की संज्ञा दी है और भरोसा जताया है कि मुख्यमंत्री से जल्द कोई सकारात्मक घोषणा सामने आएगी।
–रिपोर्ट – रितेश कुमार गुप्ता (लल्लनगुरु न्यूज़)
Ritesh Gupta
Author: Ritesh Gupta

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