कटघोरा: पर्यावरण संरक्षण व जैव विविधता संवर्धन के नाम पर वन विभाग द्वारा करोड़ों रुपये खर्च कर बड़े-बड़े पौधा रोपण अभियान चलाए जा रहे हैं। लेकिन ये योजनाएं केवल कागजों तक सीमित रह गई हैं। असली खेल तो कटघोरा वनमंडल के पसान वन परिक्षेत्र में चल रहा है, जहाँ राजस्थान से आए खानाबदोशी सैकड़ों भेड़ व ऊँट लेकर जंगल में गुपचुप डेरा डाल चुके हैं। हजारों की संख्या में ये जानवर पौधों को चर कर वन क्षेत्र को नुकसान पहुँचा रहे हैं, जबकि जिम्मेदार वन विभाग के अधिकारी मूकदर्शक बने खड़े हैं।
सूत्रों के अनुसार, पसान वन परिक्षेत्र के अधिकारी मनीष सिंह भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने में पूरी तरह संलिप्त हैं। उन्होंने निजी लाभ के लिए बड़े पैमाने पर अवैध भेड़ व ऊँटपालकों को संरक्षण प्रदान कर, सरकारी पौधा रोपण योजनाओं को पूरी तरह से बेअसर बना दिया है। पूर्व में इसी वन परिक्षेत्र में करोड़ों रुपये के पौधा रोपण घोटाले की पहचान हो चुकी है, लेकिन अब वही बेशर्मी से दोहराई जा रही है। यह पूरी घटना विभागीय संरक्षण और मिलीभगत का स्पष्ट उदाहरण बन चुकी है। मनीष सिंह के निर्देश पर खानाबदोशी समूह खुलेआम जंगल में बस गए हैं, जिससे पर्यावरण संरक्षण की हर सरकारी नीति पर सवाल खड़ा हो चुका है। न केवल पौधे चराए जा रहे हैं, बल्कि मिट्टी कटाव, जल निकासी में अवरोध, बीमारियों का फैलाव और वन्यजीवों के स्वास्थ्य पर गंभीर संकट गहराता जा रहा है।
वन अमला और स्थानीय प्रशासन भी इस पर चुप्पी साधे हुए हैं। कोई कार्रवाई नहीं की जा रही, केवल बहाने बनाकर जिम्मेदारी टाली जा रही है। सवाल उठता है – क्या यह पूरी प्रक्रिया मनीष सिंह के संरक्षण में चल रही भ्रष्ट व्यवस्था का हिस्सा है? अगर जल्द ही उच्चस्तरीय जांच दल द्वारा निष्पक्ष जांच व कड़े प्रशासनिक कदम नहीं उठाए गए, तो यह भ्रष्टाचार वन संरक्षण अभियान को ही खत्म कर देगा। हरियाली के नाम पर करोड़ों रुपये की सरकारी योजनाएं केवल भ्रष्ट अधिकारियों की जेब गर्म करने का जरिया बन गई हैं।
जनता अब जवाब मांग रही है कि आखिर कब तक मनीष सिंह जैसे भ्रष्ट अधिकारी पर्यावरण व जैव विविधता के साथ यह खिलवाड़ करते रहेंगे। सरकार और उच्च प्रशासन को तत्काल प्रभाव से कार्रवाई कर इन गिरोहों की रोटी सूखाने का संकल्प लेना होगा। वरना आने वाले समय में सिर्फ सूना जंगल व भ्रष्टाचार के रिकॉर्ड ही दस्तावेज बनकर रह जाएंगे। जंगल बचाओ, भ्रष्टाचार मिटाओ – यही वक्त की सख्त मांग बन चुकी है।

Author: Ritesh Gupta
Professional JournalisT