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नवा रायपुर में 600 करोड़ के आलीशान बंगले बेकार, 88 बंगले अब भी खाली,0 जनता के टैक्स का पैसा रखरखाव में हो रहा बर्बाद

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रायपुर, छत्तीसगढ़ | छत्तीसगढ़ की नई राजधानी नवा रायपुर एक बार फिर चर्चा में है—इस बार कारण है वहां के वो आलीशान सरकारी बंगले, जो जनता के पैसों से 600 करोड़ रुपये की लागत से बनाए गए, लेकिन अब वीरान पड़े हैं। कुल 92 बंगलों में से 88 आज भी खाली हैं। केवल चार मंत्री ही इन बंगलों में रहने पहुंचे हैं।
नवा रायपुर के सेक्टर-24 में बनाए गए ये बंगले राज्य के मंत्रियों और वरिष्ठ अधिकारियों के लिए खासतौर पर तैयार किए गए थे। इन बंगलों को अत्याधुनिक सुविधाओं से सजाया गया है—बड़े ड्रॉइंग रूम, हाई-सेक्योरिटी ज़ोन, हरे-भरे लॉन और चौड़ी सड़कें, जो किसी वीआईपी ज़ोन से कम नहीं लगतीं। इसके बावजूद, इनका उपयोग लगभग ना के बराबर है।
मंत्रियों-अफसरों को मिला आवंटन, फिर भी नापसंद
सभी मंत्रियों और 40 अधिकारियों को बंगलों का आवंटन किया जा चुका है। फिर भी ज़्यादातर अफसर और मंत्री पुराने रायपुर में स्थित अपने पारंपरिक बंगलों में ही रहना पसंद कर रहे हैं। यह स्थिति केवल रहने की नहीं, बल्कि प्रशासनिक गंभीरता पर भी सवाल खड़े करती है।
रखरखाव पर हर माह लाखों का खर्च
इतनी बड़ी संख्या में खाली बंगलों की देखरेख, सुरक्षा, सफाई और अन्य सुविधाओं पर हर महीने लाखों रुपये खर्च हो रहे हैं। बिजली, पानी, गार्ड्स, और मेंटेनेंस के लिए लगने वाला यह खर्च जनता की जेब से टैक्स के रूप में ही आता है।
बस्ती नहीं, सन्नाटा
नवा रायपुर को ‘स्मार्ट सिटी’ के रूप में विकसित करने का सपना सरकार ने 834 करोड़ रुपये खर्च कर पूरा करने की कोशिश की थी। इसके तहत मंत्रियों-अफसरों के आवास, सचिवालय भवन, सड़कों और तमाम सुविधाओं का निर्माण हुआ। परंतु आज भी वह केवल ‘ढांचे’ बनकर रह गया है। लोग इसे अब ‘सुनसान राजधानी’ कहने लगे हैं।
स्थानीय लोग और विशेषज्ञ क्या कहते हैं?
स्थानीय निवासियों का कहना है कि नवा रायपुर में मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव है। न तो पर्याप्त बाजार हैं, न स्कूल-कॉलेज और न ही स्वास्थ्य सेवाएं। दूसरी ओर, शहरी विकास विशेषज्ञों का मानना है कि केवल इमारतें बना देने से कोई राजधानी नहीं बसती। जनसुविधाएं, परिवहन, और सामाजिक माहौल बनाना जरूरी होता है।
निष्कर्ष:
सरकार को चाहिए कि वह इस गंभीर मुद्दे पर संज्ञान ले और नवा रायपुर को वास्तव में रहने लायक बनाए। वरना ये आलीशान बंगले केवल एक असफल योजना और जनता के पैसों की बर्बादी के प्रतीक बनकर रह जाएंगे।
Ritesh Gupta
Author: Ritesh Gupta

Professional JournalisT

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