कोरबा। कोरबा जिले की बहुचर्चित दीपका परियोजना में मुआवजा घोटाले का जिन्न अब बोतल से बाहर आ चुका है। वर्षों से दबी-छुपी चल रही शिकायतों के बाद आखिरकार प्रशासन ने बड़ा एक्शन लिया है। बाबू मनोज गोभिल और उनके परिवार द्वारा करोड़ों की सरकारी जमीन पर फर्जी मुआवजा लेने की साजिश को प्रशासन ने बेनकाब कर दिया है। इनके साथ ही श्यामू जायसवाल और उनके परिवार के मुआवजा वितरण पर भी रोक लगा दी गई है, और पूरे प्रकरण की जांच CBI कर रही है।
गोभिल परिवार का खुला खेल – अब मुआवजा रद्द
राजस्व विभाग के बाबू मनोज गोभिल ने अपने रिश्तेदारों के नाम से शासकीय भूमि का मुआवजा बनवाकर एक बड़ा घोटाला रच डाला। जांच में सामने आया है कि खसरा नंबर 558/1, रकबा 16.147 हेक्टेयर शासकीय भूमि को निजी संपत्ति दर्शाकर नीलू, नीलम, बरातु, विमला देवी जैसे नामों पर फर्जी मुआवजा बनाया गया। यही नहीं, फरवरी 2024 में बाकायदा पत्रक तैयार कर इन पर मोहर और हस्ताक्षर कर मुआवजा देने की तैयारी भी कर ली गई थी।
प्रशासन ने सख्त कदम उठाते हुए पांचों मुआवजा को तत्काल निरस्त कर दिया है। अब इन्हें भविष्य में उस भूमि पर एक भी रुपया मुआवजा नहीं मिलेगा। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि करोड़ों के इस फर्जीवाड़े के जिम्मेदार मनोज गोभिल और पटवारी विकास जायसवाल के खिलाफ एफआईआर दर्ज क्यों नहीं की गई? क्या SECL दोषियों को बचा रही है?
श्यामू जायसवाल पर सीबीआई की नजर, मुआवजा पर ब्रेक
दूसरी तरफ, दीपका-गेवरा क्षेत्र के चर्चित श्रमिक नेता और ट्रांसपोर्टर श्यामू जायसवाल का मामला भी गंभीर जांच के घेरे में है। उनके और उनके परिवार के नामों पर संदिग्ध परिसंपत्तियों के आधार पर फर्जी मुआवजा पत्रक तैयार किया गया, जिसकी शिकायत पर CBI ने दबिश दी और जांच शुरू की। प्रशासन ने फिलहाल इनका सारा मुआवजा रोक दिया है और आदेश दिया है कि जब तक CBI जांच पूरी नहीं होती, तब तक कोई भुगतान नहीं होगा।
श्यामू के साथ-साथ उनके परिवार के अन्य सदस्यों—खुशाल, अनुभव, अर्पिता, सिद्धार्थ, प्रदीप, रेखा, केदारनाथ, रेणुका, आलोक, हीरामणि, प्रीति—के नाम इस फर्जीवाड़े में शामिल हैं।
प्रशासन ने दिखाई सक्रियता, SECL की भूमिका पर सवाल
प्रशासन ने जहां मुआवजा निरस्त कर अपनी जिम्मेदारी निभाई, वहीं SECL की भूमिका लगातार संदेह के घेरे में है। क्या SECL की मौन सहमति से करोड़ों के फर्जी मुआवजे की तैयारी हो रही थी? क्या जानबूझकर अधिकारियों से दस्तखत और सील लगवाकर मुआवजा पास करने का षड्यंत्र रचा गया?
यदि समय रहते शिकायतकर्ता सामने न आते, तो करोड़ों की सरकारी राशि फर्जी दावेदारों की जेब में पहुंच जाती और असली प्रभावित किसान फिर ठगे रह जाते।
अब जनता पूछ रही है—‘क्या यह सिर्फ मुआवजा घोटाला है या नौकरशाही की मिलीभगत का सबूत?’
प्रशासनिक कार्रवाई के बाद अब निगाहें SECL पर टिकी हैं। क्या कंपनी दोषियों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करेगी, या फिर सबकुछ ठंडे बस्ते में डालकर चुप्पी साध लेगी?
यह सिर्फ घोटाला नहीं, आम जनता के अधिकारों पर डाका है—और यह डाका अधिकारियों की मिलीभगत से डाला गया है।

Author: Ritesh Gupta
Professional JournalisT