Korba: वन संरक्षण अधिनियम 1980 की धारा 2 के तहत राजस्व दस्तावेजों में बड़े झाड़ के जंगल के रूप में दर्ज जमीन का आवंटन केंद्र शासन की अनुमति के बगैर राज्य शासन के अधिकारी नहीं कर सकते। हाईकोर्ट ने याचिकाएं खारिज कर दी हैं। सुप्रीम कोर्ट का इस संबंध में जजमेंट है,तो किस आधार पर पसान के तत्कालीन तहसीलदार के द्वारा उक्त भूमि का आबंटन किया गया था , किया गया आबंटन पूरे तरीके से फर्जी है,?
पूरा मामला कोरबा जिले पोड़ी उपरोड़ा अनुभाग अंतर्गत पसान तहसील का है
सुप्रीम कोर्ट के आदेश का खुला उलघंन किया गया है
जिस संबंध में जिला कलेक्टर अजीत बसंत को आवेदन भी दिया गया है परंतु कलेक्टर साहब द्वारा पूरे मामले को ही पलटते हुए आवेदन पर कार्यवाही करने के बदले रफादफा कर दिया गया है, जबकि आवदेन में फर्जी पट्टा के आबंटन के संबध में ही जांच करने की मांग की गई थी , स्पष्ट लिखा गया है की बड़े झाड़ जंगल मद भूमि का आबंटन केंद्र सरकार अनुमति के बगैर नहीं हो सकता तो किस आधार पर तहसीलदार ने आबंटन किया
सिविल कोर्ट के आदेश को जरिया बनाते हुए उक्त मामले को खारिज कलेक्टर द्वारा कर दिया गया है जबकि सिविल कोर्ट के मामले में वादी और प्रतिवादी के बीच कब्जे के विवाद को लेकर केस दायर किया गया था ना की बड़े झाड़ जंगल मद भूमि से संबंधित किसी बातो का उल्लेख हुआ था ,
तो जब सिविल कोर्ट मामले में कब्जा के विवाद को लेकर याचिका दायर हुआ था तो उसके फैसले से बड़े झाड़ जंगल मद भूमि के आबंटन का क्या संबध? जबकि पूरे मामले को घुमाते हुए राजस्व विभाग के अधिकारियो तहसीलदार , एसडीएम और कलेक्टर के द्वारा मामले को खत्म कर दिया गया , जबकि सिविल का मामला कब्जा विवाद का था, और कलेक्टर साहब को दिया गया आवेदन बड़े झाड़ जंगल मद भूमि के फर्जी आबंटन को लेकर है , फर्जी पट्टे की विस्तृत जांच कर निरस्त करने की मांग की गई है
बड़ी विडंबना है की जिले के मुखिया को उनके ही विभाग के अधिकारियो द्वारा गुमराह कर दिया जाता है,तहसीलदार के द्वारा भू माफिया को बचाने के चक्कर में ऐसा साजिश रचा जाता है जिससे भू माफिया बाइज्जत बरी हो सके,
बड़े झाड़ जंगल मद भूमि और फर्जी पट्टा मामले की जांच ना कर बड़े से शातिर तरीके से सिविल कोर्ट के आदेश को आधार बनाकर मामले को खत्म कर दिया जाता है क्यों?
क्या जिले के मुखिया को लिखे आवदेन में बिंदु की जानकारी नही है , की किन बिंदुओं पर कार्यवाही की और जांच की मांग की गई है??
क्या जिले के मुखिया को आवेदन और जांच प्रतिवेदन में अंतर नही दिख रहा ??
क्या जिले के मुखिया को एक तहसीलदार पर इतना भरोसा है की दिए गए आवेदन के बिंदुओं को दरकिनार कर सिविल कोर्ट के आदेश को आधार बनाकर मामले में रफा दफा करने की साजिश नजर नही आती??
सिविल कोर्ट में चले प्रकरण में कब्जा विवाद का मामला था, जबकि कलेक्टर को दिए आवदेन में बड़े झाड़ जंगल मद की भूमि के फर्जी आबंटन की बात कही गई है,
कलेक्टर को गुमराह करते हुए तहसीलदार ने जारी किया प्रेस विज्ञप्ति,
शिकायत फर्जी पट्टा का किया गया था आवेदनकर्ता द्वारा बड़े झाड़ जंगल मद भूमि पर संज्ञान लेकर उक्त पट्टे की जांच हेतु आवेदन दिया था परंतु पसान तहसीलदार लीलाधर ध्रुव के द्वारा पूरे मामले को पलटते हुए सिविल कोर्ट में चले केस का हवाला देते हुए मामले को ही रफादफा कर दिया ,जबकि उक्त मामला बेहद गंभीर है , बड़े झाड़ जंगल मद भूमि पर फर्जी पट्टा बनवाकर निर्माण गैर कानूनी है,लेकिन जिले का पूरा राजस्व विभाग भू माफिया को संरक्षण देने में लगा हुआ है
जिला प्रशासन को किए गए शिकायत की मुख्य बिंदु
जिसके संबंध में निम्न जानकारी है,
1..यह की उपरोक्त खसरा नं 180/3, एवं 180/5 बड़े झाड़ जंगल मद की भूमि है,
2..यह की केंद्र शासन की पूर्व अनुमति के बगैर राज्य शासन के अधिकारी भी बड़े झाड़ के जंगल का आवंटन नहीं कर सकते।
3.. यह की पसान के भूमाफिया अमरनाथ साहू पिता बल्लू राम साहू के द्वारा 180/3, एवं 180/5 खसरा नंबर भूमि का फर्जी पट्टा दिखाकर भूमि पर अवैध कब्जा किया जा रहा है, जबकि 180 नंबर की भूमि बड़े झाड़ जंगल मद की भूमि है ,
4…यह की उक्त खसरा नंबर(बड़े झाड़ जंगल मद) की भूमि का आबंटन नही किया जा सकता, तो किस दस्तावेजों और आदेश के आधार पर भू माफिया अमरनाथ साहू पिता बल्लू राम साहू के नाम पर पट्टा जारी किया गया है, इसकी विस्तृत जांच भी अति महत्वपूर्ण है,