कोरबा। राम-राम जपना, सरकारी माल अपना…. की तर्ज पर कोरबा जिले में खनिज संस्थान न्यास की राशि का बड़ी बेदर्दी से 40% कमीशनखोरी पर बंदरबांट करने के मामले में ED ने अपनी जांच तेज कर दी है। तत्कालीन कलेक्टर रानू साहू कोयला के मामले में जहां जांच का सामना कर रही हैं वहीं उनके कार्यकाल में खास रही सहायक आयुक्त आदिवासी विकास विभाग श्रीमती माया वारियर की डीएमएफ घोटाला में गिरफ्तारी के बाद से कोरबा जिले में खलबली मच गई है।डीएमएफ से अनेक अनुपयोगी कार्यों का आवंटन प्राप्त कर उसका ठेका लेने,ठेका हासिल कर बेच देने, विभिन्न उपयोगी-अनुपयोगी सामानों की पूर्ण अदूरदर्शिता के साथ खरीदी व सप्लाई के नाम पर बेहिसाब बिलों के जरिए राशि आहरण करने वालों की लंबी- चौड़ी लिस्ट ED के पास मौजूद है। ऐसे तमाम लोगों में खलबली मच गई है जिनके हाथ डीएमएफ घोटाले में सने हुए हैं।
सूत्र बताते हैं कि आदिवासी विकास विभाग के विभागीय कर्मियों से लेकर खनिज विभाग भी लपेटे में आ सकता है। ठेकेदारों, सप्लायरों और दलालों को मिलाकर लगभग एक से डेढ़ दर्जन गिरफ्तारी अकेले कोरबा जिले से होने की संभावना है। ऐसे लोग या तो अंडरग्राउंड होने की फिराक में हैं या फिर समर्पण करने या दूसरा रास्ता अपनाने की जुगत लग रहे हैं।
वैसे ED की कमान इस बार बहुत ही सही आईपीएस अधिकारी ने संभाल रखी है। वह मामले की तह तक जाकर नीर-क्षीर, बेदाग विवेचना में विश्वास रखते हैं और उनकी जांच की बारीकियों से भ्रष्टाचारी तो बिल्कुल भी बच नहीं सकते। बकरे की अम्मा आखिर कब तक खैर मनाएगी और सूत्र बताते हैं कि जल्द ही ED की टीम कोरबा आकर घोटाले में शामिल लोगों की गिरफ्तारी कर सकती है।
0 DMF का अनाप-शनाप खर्च
कोरबा जिले को DMF के तहत बड़ी रकम अरबों में मिलती है। पूर्व कलेक्टर रानू साहू के कार्यकाल में सहायक आयुक्त ने अपने अधीन हॉस्टल्स और अन्य भवनों में DMF की रकम का जमकर दुरूपयोग किया। कार्यकाल के दौरान छात्रावासों के मरम्मत और सामान खरीदी के लिए DMF के करोड़ो रूपये के फंड का इस्तेमाल किया गया और इसकी मूल नस्ती ही कार्यालय से गायब कर दी गयी। बताया जा रहा है कि 6 करोड़ 62 लाख रूपये में करीब 3 करोड़ रूपये का विभाग ने कई ठेकेदारों को भुगतान भी कर दिया, लेकिन किस काम के एवज में कितना भुगतान किया गया, इससे जुड़े सारे दस्तावेज ही विभाग से गायब हो गए। कोरबा में अलग-अलग टेंडर आवंटन में बड़े पैमाने पर आर्थिक अनियमितता की गई है। टेंडर भरने वालों को अवैध लाभ पहुंचा कर सरकारी धन का दुरुपयोग किया गया।
0 अधिकारियों को 40 फीसदी कमीशन
ED की जांच में पाया गया है कि टेंडर की राशि का 40% सरकारी अफसरों को कमीशन के रूप में दिया जाता रहा। प्राइवेट कंपनियों के टेंडर पर 15 से 20% अलग-अलग कमीशन सरकारी अधिकारियों ने लिए। कई विभागीय अधिकारियों ने अपने पद का गलत इस्तेमाल किया।
0 साजिश में ये नाम भी शामिल
ED के तथ्यों के मुताबिक टेंडर करने वाले संजय शिंदे, अशोक कुमार अग्रवाल, मुकेश कुमार अग्रवाल, ऋषभ सोनी और बिचौलिए मनोज कुमार द्विवेदी, रवि शर्मा, पियूष सोनी, पियूष साहू, अब्दुल और शेखर आदि के साथ मिलकर सामग्री सप्लाई में वास्तविक कीमत से ज्यादा का बिल भुगतान कर दिया। आपस में मिलकर साजिश करते हुए पैसे कमाए गए।

Author: Ritesh Gupta
Professional journalist