गौरेला-पेंड्रा-मरवाही (छत्तीसगढ़) — पत्रकार कृष्णा पाण्डेय की सतर्कता ने एक ऐसे रैकेट का भंडाफोड़ किया है, जो वर्षों से प्रशासन की आंखों में धूल झोंकता चला आ रहा था। पेंड्रा क्षेत्र में 150 से अधिक भैंसों को बिना वैध दस्तावेजों के ले जाया जा रहा था, और स्थानीय पुलिस की मिलीभगत से यह अवैध कारोबार खुलेआम फल-फूल रहा था।
पत्रकारिता की जीत, कानून की हार
10 जनवरी की रात जब कृष्णा पाण्डेय ने सोनकुंड बाजार के पास भैंसों के झुंड को देखा, तो उन्होंने जो किया, वह एक साहसी नागरिक और सच्चे पत्रकार की मिसाल बन गया। न दस्तावेज, न लाइसेंस—फिर भी भैंसे खुलेआम बाजार में पहुंचा दी गईं। सवाल यह है: क्या पुलिस वाकई नियमों का पालन कर रही थी, या फिर कोई और खेल चल रहा था?
पुलिस पर उठते सवाल
पेंड्रा टीआई बंजारे, एसआई साहू और एएसआई रजक की भूमिका इस पूरे मामले में जांच के दायरे में है। जब रातभर की कार्रवाई के बाद सुबह अचानक भैंसों को छोड़ने का फैसला लिया गया, तो यह स्पष्ट हो गया कि या तो दबाव था, या फिर मिलीभगत। पत्रकार के सवालों के जवाब अस्पष्ट थे, और पुलिस के पास कोई ठोस आधार नहीं था,
प्रशासनिक लापरवाही या संरक्षण?
इस प्रकरण ने राज्य की पशु तस्करी नीतियों और प्रशासनिक कार्यप्रणाली पर गहरा प्रश्नचिन्ह खड़ा किया है। क्या पुलिस की निष्क्रियता महज लापरवाही थी, या फिर यह एक सोची-समझी मिलीभगत का हिस्सा?
अब सवाल जनता से
यह घटना केवल पत्रकार की नहीं, पूरे समाज की जिम्मेदारी को सामने लाती है। क्या हम ऐसे भ्रष्टाचार पर आंख मूंद लेंगे? या फिर आवाज़ उठाकर जवाब मांगेंगे?

Author: Ritesh Gupta
Professional JournalisT