फर्जी डिग्री पर 15 साल तक ठगता रहा शासन, आखिरकार बर्खास्त… अब जेल की तैयारी!
आकांक्षी जिला कोरबा में बड़ा खुलासा — हाईस्कूल लबेद के व्याख्याता लक्ष्मीनारायण राजवाड़े की बीएड और एमए की डिग्री फर्जी, डीपीआई ने किया बर्खास्त, एफआईआर तय!
कोरबा। शिक्षक जैसे गरिमामय पद को कलंकित करने वाला सनसनीखेज मामला आकांक्षी जिला कोरबा से सामने आया है। करतला विकासखंड के शासकीय हाईस्कूल लबेद में व्याख्याता (एलबी) के पद पर पदस्थ लक्ष्मीनारायण राजवाड़े को फर्जी बीएड और एमए (संस्कृत) की डिग्री के सहारे करीब 15 साल तक शासन की आंखों में धूल झोंकने का दोषी पाए जाने पर अंततः लोक शिक्षण संचालनालय (डीपीआई) ने सेवा से बर्खास्त कर दिया है। तीन साल की लंबी जांच, बार-बार पत्राचार, और विश्वविद्यालय की स्पष्ट रिपोर्ट के बाद यह कार्रवाई की गई है। अब सवाल यह उठ खड़ा हुआ है — क्या विभाग एफआईआर दर्ज करेगा या एक और शिकायत का इंतजार करेगा?
विश्वविद्यालय ने खोली फर्जीवाड़े की पोल,,
गुरु घासीदास विश्वविद्यालय बिलासपुर (कोनी) द्वारा राजवाड़े की बीएड अंकसूची को फर्जी करार दिया गया है। विश्वविद्यालय ने 17 मई 2023 को स्पष्ट कर दिया कि वर्ष 2008 में जारी बीएड की कोई भी अंकसूची उनके रिकॉर्ड में नहीं है। इतना ही नहीं, वर्ष 2005 की एमए (संस्कृत) की डिग्री भी विश्वविद्यालय ने फर्जी बताई है। हालांकि, वर्ष 2003 की बीए डिग्री को असली माना गया है।
सुनवाई में दिखाया ड्रामा, फंस गए राजवाड़े
राजवाड़े को चार बार पक्ष रखने का अवसर दिया गया— 5 जून, 15 जुलाई, 1 अगस्त और 13 सितंबर 2024 को। वे केवल अंतिम तिथि 4 अक्टूबर को उपस्थित हुए और बाकी सुनवाई से गायब रहे। लिखित जवाब में खुद को निर्दोष बताया, लेकिन जब दस्तावेज ही फर्जी निकले, तो झूठ की दीवार ढह गई।
झूठे दस्तावेज, पक्का अपराध — अब सिर्फ बर्खास्ती नहीं, सजा भी जरूरी!
राज्य शासन के स्पष्ट निर्देश हैं कि यदि कोई शासकीय सेवक नियुक्ति के लिए अयोग्य पाया जाए या फर्जी दस्तावेज प्रस्तुत करे, तो बर्खास्ती ही एकमात्र सजा है। लेकिन मामला सिर्फ यहीं खत्म नहीं होता — अब इस फर्जीवाड़े के लिए राजवाड़े पर एफआईआर और आपराधिक कार्यवाही भी बनती है।
सवाल अब बड़ा है — क्या शासन जागेगा?
यह पहला मामला नहीं है। कोरबा जिले में वर्ष 2010 से पूर्व नियुक्त दर्जनों शिक्षकों की डिग्रियों पर सवाल उठ चुके हैं। कुछ मामलों में कार्रवाई हुई, तो कुछ मामले विभागीय संरक्षण और अदालती पेंच में दब गए। अब जरूरत इस बात की है कि शासन और जिला प्रशासन तत्काल 2010 से पूर्व नियुक्त समस्त शिक्षकों के दस्तावेजों का चरणबद्ध सत्यापन कराए। ताकि शिक्षा व्यवस्था से फर्जीवाड़े की गंदगी हटाई जा सके और शिक्षक पद की गरिमा बरकरार रहे।
अब जनता पूछ रही है — कब होगी एफआईआर?
क्या शिक्षा विभाग अब स्वतः संज्ञान लेकर एफआईआर दर्ज करेगा या फिर किसी सामाजिक कार्यकर्ता को एक और शिकायत करनी पड़ेगी? जब फर्जीवाड़ा सिद्ध हो चुका है, तो क्या केवल बर्खास्ती ही पर्याप्त है? जवाब अब शासन और प्रशासन को देना है।
समाप्त नहीं हुआ यह मामला — ये तो सिर्फ शुरुआत है!
अब देखना है कि शासन इस फर्जी नियुक्ति के गुनहगार को जेल भेजने की पहल करता है या फिर एक और फाइल ‘न्याय की प्रतीक्षा’ में धूल फांकती रहेगी। शिक्षा विभाग की अगली कार्रवाई पर पूरे राज्य की नजरें टिकी हैं।

Author: Ritesh Gupta
Professional JournalisT