जनपद सीईओ की मनमानी उजागर: सरपंच-पंचों का 77 लाख मानदेय दबाने का प्रयास, शिकायत के बाद मची हलचल, पाली जनपद पंचायत में भ्रष्टाचार की बू, सीईओ पर गंभीर आरोप
पाली/कोरबा – पंचायत प्रतिनिधियों के अधिकारों पर डाका डालने की कोशिश का बड़ा मामला पाली जनपद पंचायत से सामने आया है। यहां सीईओ भूपेंद्र सोनवानी पर आरोप है कि उन्होंने सरपंचों और पंचों को मिलने वाली मानदेय राशि लाखों में दबाकर रखी और भुगतान में जानबूझकर देरी की। जब मामला सुशासन तिहार में शिकायत के रूप में सामने आया और धीरे-धीरे इसकी सुगबुगाहट फैलने लगी, तो सीईओ आनन-फानन में 77 लाख रुपए का चेक बैंक को जारी कर बैठे, लेकिन खाते में महज 3 लाख होने के चलते चेक बाउंस हो गया।
बिना कमीशन काम नहीं!
जनपद पंचायत पाली के हालात ऐसे हो गए हैं कि यहां बिना लेनदेन के कोई कार्य नहीं होता। सरपंच और पंचायत सचिव कार्यालयीन कार्यों के लिए भटकते रहते हैं, लेकिन बिना कमीशन कोई सुनवाई नहीं होती। सूत्रों के अनुसार जनपद सीईओ के खिलाफ यह आम धारणा बन चुकी है कि वे हर फाइल पर अपनी ‘शर्तों’ के बिना हस्ताक्षर नहीं करते।
लाखों की राशि दबाकर बैठा था जनपद
सरकार द्वारा पंचायत प्रतिनिधियों को दिए जाने वाले मानदेय में वृद्धि के बाद अब सरपंचों को ₹4000 और पंचों को ₹500 प्रतिमाह दिए जाने की व्यवस्था है। लेकिन अगस्त 2024 से फरवरी 2025 तक का मानदेय पाली जनपद में रोका गया। जबकि जिले के अन्य जनपदों में समय पर भुगतान हो चुका था। इस देरी के पीछे सीईओ द्वारा “बजट अलॉटमेंट नहीं हुआ” कहकर पल्ला झाड़ा जाता रहा।
चेक बाउंस, फिर हड़कंप में जमा की गई राशि
शिकायत के बाद जब मामले ने तूल पकड़ा, तो सीईओ ने जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक मर्यादित, पाली शाखा को ₹77 लाख का चेक जारी कर दिया। लेकिन बैंक खाते में केवल ₹3 लाख की राशि होने से चेक बाउंस हो गया। इस फजीहत के बाद दबाव में आए सीईओ ने पूरी राशि खाते में जमा कर भुगतान किया।
सरपंच बोले – डकारने वाला था हमारा पैसा
जनपद के कई सरपंचों का कहना है कि सीईओ पूरी योजना बनाकर पंचायत प्रतिनिधियों की मानदेय राशि हड़पना चाह रहे थे। लेकिन शिकायत सार्वजनिक होने के बाद वह बैकफुट पर आ गए और जल्दबाज़ी में राशि जमा करनी पड़ी।
अब सवाल – क्या होगी कार्रवाई?
सरपंचों ने मांग की है कि इस पूरे मामले की निष्पक्ष जांच हो और सीईओ के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की जाए। क्योंकि यह न सिर्फ भ्रष्टाचार का गंभीर मामला है, बल्कि इससे शासन की पारदर्शिता और विश्वसनीयता पर भी गहरी चोट पहुंची है।
👉 यदि समय रहते आवाज न उठाई जाती, तो शायद पंचायत प्रतिनिधियों की ये मेहनत की कमाई गुपचुप तरीके से हजम कर ली जाती। ऐसे में प्रशासन की जवाबदेही बनती है कि वह इस पर कड़ी और सार्वजनिक कार्रवाई करे।
रिपोर्ट – Lallanguru News, पाली से विशेष संवाददाता

Author: Ritesh Gupta
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