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गौरेला-पेंड्रा-मरवाही: जंगल मद ज़मीन घोटाला: 1.5 साल से शिकायत लंबित, SDM ऋचा चंद्राकर टाल रही जवाब, RTI में भी लीपापोती

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गौरेला-पेंड्रा-मरवाही, 16 जून 2025। सकोला तहसील के ग्राम सेखवा में जंगल मद की 35.60 एकड़ शासकीय भूमि पर अवैध कब्जा और निर्माण का गंभीर मामला सामने आया है। बावजूद इसके, पिछले 1.5 साल से प्रशासन सिर्फ फाइलें घुमा रहा है। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि जब शिकायतकर्ता ने सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के तहत इस मामले की जानकारी मांगी, तो SDM ऋचा चंद्राकर ने गोलमोल जवाब देकर मामले को दबाने का प्रयास किया।
RTI के जवाब में झूठी दलीलें, जांच रिपोर्ट देने से किया इनकार
13 जून 2025 को जारी SDM कार्यालय की जवाबी चिट्ठी में कहा गया कि – “मामला न्यायालय में लंबित है” और इस आधार पर जानकारी देने से साफ इनकार कर दिया गया। जबकि RTI एक्ट की धारा 6(3) और धारा 7 के तहत किसी भी नागरिक को तय समय सीमा में सूचना देना कानूनी अनिवार्यता है।
शिकायतकर्ता को 3 बार RTI के बाद भी नहीं मिला जवाब
शिकायतकर्ता द्वारा अब तक तीन बार RTI के तहत आवेदन दिए गए, लेकिन हर बार SDM ऋचा चंद्राकर की ओर से या तो अनावश्यक कानूनी बहाने दिए गए या जांच लंबित बताकर जवाब टाल दिया गया।
प्रशासनिक मिलीभगत की आशंका
यह पूरा मामला इसलिए भी संदेहास्पद है क्योंकि जिस भूमि पर अवैध कब्जा हुआ है, वह बड़े झाड़ के जंगल मद में दर्ज थी। ऐसी भूमि पर बिना अनुमति निर्माण और नामांतरण न केवल गैरकानूनी है, बल्कि यह साफ तौर पर राजस्व विभाग, तहसील और जिला प्रशासन की मिलीभगत का संकेत देता है।

जनता और न्यायप्रिय नागरिकों के सवाल
SDM ऋचा चंद्राकर जवाबदेही से क्यों बच रही हैं?
क्या RTI का उल्लंघन करने पर उनके विरुद्ध कार्रवाई होगी?
1.5 साल में एक भी जांच रिपोर्ट क्यों नहीं आई?
जंगल मद भूमि का फर्जी नामांतरण कैसे हुआ और किसने अनुमति दी?
RTI कानून के तहत सूचना नहीं देने पर SDM पर दंडात्मक कार्रवाई हो
जांच रिपोर्ट तत्काल सार्वजनिक की जाए
अवैध कब्जे और नामांतरण में शामिल अधिकारियों पर FIR हो
यह प्रकरण न सिर्फ जमीन कब्जे का है, बल्कि शासन प्रशासन की जवाबदेही, पारदर्शिता और संवैधानिक अधिकारों की उपेक्षा का बड़ा प्रतीक बन गया है।
यह सवाल बेहद गंभीर और न्यायिक जांच की मांग करता है:
“क्या बड़े झाड़ जंगल मद भूमि घोटाले में शिकायत और कार्रवाई के बीच सौदेबाजी हुई?”
प्रस्तुत दस्तावेज़ों, RTI जवाब और 1.5 साल की निष्क्रियता को देखकर सौदेबाजी (settlement or compromise) की आशंका को नकारा नहीं जा सकता। नीचे कुछ ठोस संकेत दिए जा रहे हैं जो इस आशंका को मजबूती देते हैं:
🔍 सौदेबाजी की आशंका के स्पष्ट संकेत:
1. शिकायत लंबित रखना और जानबूझकर जांच न करना
1.5 साल पहले शिकायत हुई, दस्तावेजों में स्पष्ट लिखा गया है कि जंगल मद भूमि पर अवैध निर्माण व नामांतरण हुआ — फिर भी अब तक न तो एफआईआर, न कोई जांच रिपोर्ट — ये प्रशासनिक मूक स्वीकृति या सौदेबाजी की ओर संकेत करता है।
2. RTI में टालमटोल और जवाब देने से इनकार
तीन बार RTI के बाद भी SDM ऋचा चंद्राकर की ओर से गोलमोल जवाब:
> “मामला न्यायालय में लंबित है, इसलिए जानकारी नहीं दी जा सकती।”
यह बयान RTI कानून का उल्लंघन है, जो दिखाता है कि सूचना देने में जानबूझकर देरी की गई — क्यों? कहीं अंदरखाने कुछ “सेटिंग” तो नहीं चल रही?
3. भूमि को बेचने और नामांतरण का प्रयास
जंगल मद की भूमि को फर्जी दस्तावेज़ बनाकर नामांतरण और बिक्री की कोशिश — ये खुद में बड़ा अपराध है। यह बिना राजस्व व प्रशासनिक अधिकारियों की मिलीभगत संभव नहीं।
4. शिकायतकर्ता को घुमाना और ठोस कार्रवाई से बचना
शिकायतकर्ता ने बार-बार दस्तावेज़ प्रस्तुत कर, तहसील स्तर से लेकर कलेक्टर तक मामला उठाया। फिर भी, कहीं से कोई ठोस जांच आदेश या कार्रवाई का प्रमाण नहीं। यह प्रयासों को जानबूझकर धीमा करने या सौदेबाजी से रफा-दफा करने की कोशिश लगती है।
📢 यदि सौदेबाजी हुई है तो यह गंभीर अपराध है:
यह जवाबदेही से भागना है
RTI अधिनियम 2005 की अवहेलना है
जंगल मद भूमि का फर्जी उपयोग संविधान और पर्यावरण कानून दोनों का उल्लंघन है
दोषी अधिकारी और लाभार्थी भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के दायरे में आते हैं
Saket Verma
Author: Saket Verma

A professional journalist

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