मरवाही। मरवाही वन मंडल में पदस्थ कुछ बाबुओं द्वारा अपने पद और प्रभाव का दुरुपयोग करते हुए अपने–अपने रिश्तेदारों की पदस्थापना मनचाही जगहों पर करवाने का गंभीर मामला सामने आया है। सूत्रों के अनुसार, यह पूरा खेल आपसी समझौते और लेन-देन के आधार पर वर्षों से चल रहा है, जिससे विभागीय पारदर्शिता पर बड़ा प्रश्नचिन्ह खड़ा हो गया है।
🔹 पुरुषोत्तम कश्यप, वन विभाग का कर्मचारी, अपने भतीजे रामचंद्र कश्यप को डिवीजन कार्यालय में अपने ही कक्ष में रखे हुए हैं।
🔹 अवध बाबू, जो वर्तमान में खोडरी में पदस्थ हैं, उन्होंने अपने दामाद की पदस्थापना पेंड्रा रेंज कार्यालय में करवा दी है।
🔹 बलराम मरावी ने अपने भतीजे को खोडरी रेंज में नियुक्त करवा रखा है।
🔹 राय बाबू ने अपने भाई को माना डिपो में पदस्थ किया है।
🔹 प्रकाश बंजारे द्वारा अपने रिश्तेदार को इंदिरा उद्यान, पेंड्रा में कार्यरत करवा दिया गया है।
इस तरह से मरवाही वन मंडल में “रिश्तेदारवाद” का बोलबाला है, जहां काबिलियत की बजाय पारिवारिक संबंधों को प्राथमिकता दी जा रही है। यह स्थिति न केवल विभागीय कार्य संस्कृति को प्रभावित कर रही है बल्कि नियमों की खुलेआम अनदेखी का संकेत भी देती है। सूत्रों का कहना है कि यह सारी पोस्टिंग बिना किसी वैधानिक प्रक्रिया के आपसी समझौते और प्रभावशाली दबाव में की गई हैं। विभाग के उच्च अधिकारियों और शासन को इस गंभीर अनियमितता की जानकारी तक नहीं है—or वे जानकर भी अनदेखी कर रहे हैं?
क्या कहती है नीति…?
वन विभाग की आचार संहिता के अनुसार, किसी भी कर्मचारी को अपने नजदीकी रिश्तेदार के साथ सीधे अधीनस्थ या सहकर्मी के रूप में कार्य करने की अनुमति नहीं है। ऐसे मामलों में पारदर्शिता और निष्पक्षता की संभावना खत्म हो जाती है, जो शासन की मूल भावना के विपरीत है।
अब सवाल यह उठता है…
क्या मरवाही वन मंडल के अधिकारी अपने रिश्तेदारों की नियुक्तियों को लेकर शासन को गुमराह कर रहे हैं? क्या यह पूरी व्यवस्था भाई-भतीजावाद और स्वार्थ की नींव पर खड़ी है?
और सबसे बड़ा सवाल—क्या शासन इस पूरे प्रकरण पर आंख मूंदे रहेगा या जांच की दिशा में कोई ठोस कदम उठाया जाएगा? यदि जांच हुई तो कई चौंकाने वाले नाम सामने आ सकते हैं। फिलहाल विभाग और शासन दोनों की चुप्पी कई सवालों को जन्म दे रही है।
Author: Ritesh Gupta
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