जारी किए गए शासकीय पट्टाधारियों के भौतिक कब्जा की जांच जरूरी
कोरबा। कोरबा जिले में उद्योगों की जमीनों पर बढ़ते बेतहाशा अवैध कब्जादारों की बात छोड़ दें तो सरकारी, राजस्व और वन भूमि के साथ-साथ शासन द्वारा विभिन्न योजनाओं के तहत सरकारी पट्टा में प्रदान किए गए भूमि को चंद धन्ना सेठों के द्वारा अपने रसूख और राजनीतिक आकाओं के दम पर खसरा और रकबा में छेड़छाड़ करते हुए राजस्व,वन विभाग के चंद अधिकारी व कर्मचारियों के सहयोग से रिकॉर्ड में खेल कर निजी बताया जा रहा है। उपनगरीय और ग्रामीण अंचलों में यह काम काफी धड़ल्ले से चल रहा है लेकिन इन पर प्रशासन की नजर अपेक्षित और सख्त रूप से नहीं पड़ रही है। हालात यह है कि यदि किसी रसूखदार ने कुछ एकड़ जमीन एक नंबर में खरीदी है तो वह उसके आसपास के शासकीय पट्टेदारों की जमीन को भी खरीद ले रहा है और शेष सरकारी,वन जमीन को धीरे-धीरे कब्जा करते हुए अपना दायरा बढ़ा रहा है।
कोरबा के ग्रामीण अंचलों में सीधे-साधे भोले-भाले आदिवासी व अन्य वर्ग के ग्रामीणों का फायदा उठाकर, उनकी मजबूरी दर्शाकर जहां ऐसे खेल खेले जा रहे हैं तो दूसरी तरफ इस समय कटघोरा वन क्षेत्र में कसनिया से सुतर्रा और इसके आसपास यह काम धड़ल्ले से हो रहा है। रिकार्ड में बड़े व छोटे झाड़ की जंगल भूमि को निजी भूमि दर्शाने का भी खेल हुआ है। एक स्कूल के संचालक ने तो अपना दायरा इस कदर बढ़ा लिया है कि उसकी जांच हो जाए तो उस पर करोड़ों का जुर्माना आरोपित हो सकता है। वन विभाग की साठगांठ से जंगल की जमीन एक रसूखदार के हत्थे चढ़ गई है।
कोरबा जिले के विभिन्न क्षेत्रों में जंगली, वन्य इलाकों में लाल और सफेद ईंटों से होते मध्यम व बड़े निर्माण, पेड़ों की कटाई ऐसे कई सवाल खड़े कर रही है कि आखिर इस जंगलों के बीच किसकी निजी जमीन आ गई और यदि किसी को पट्टा में जमीन प्राप्त हुई है तो वह इतना पैसे वाला कैसे बन गया कि धड़ाधड़ निर्माण पर निर्माण कराया जा रहा है।
जिला प्रशासन को आवश्यकता है कि वह सभी तहसील क्षेत्र में शासकीय पट्टा सहित योजना के नाम पर भूमि प्राप्त किए हुए लोगों या उनके आश्रितों के भौतिक कब्जा की गहन और ईमानदाराना जांच कराए। ऐसे लोग जिन्होंने छलपूर्वक या मजबूरी का फायदा उठाकर, लालच देकर किसी के शासकीय पट्टा की जमीन खरीद कर/हस्तांतरित कराकर अपनी अट्टालिका खड़ी की है, तो उस पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। कार्रवाई के मामले में दोहरा मापदंड भी अपनाया जाना न्याय उचित नहीं होगा। वन भूमि पर काबिज होने वालों की भी जांच जिला प्रशासन की देखरेख में कराए जाने की आवश्यकता बन पड़ी है।

Author: Ritesh Gupta
Professional JournalisT