कोरबा। सरकारी स्कूल में घोटाले का ऐसा शर्मनाक मामला सामने आया है, जिसने पूरे शिक्षा विभाग की साख पर सवाल खड़े कर दिए हैं। प्राथमिक शाला करूं महुआ के प्रधान पाठक आनंद तिवारी ने 6 वर्षों तक हफ्ते में महज एक दिन स्कूल जाकर शेष दिनों की हाजिरी फर्जी तरीके से लगवा ली और सरकार से लगभग 65 लाख रुपये वेतन के रूप में उठा लिए। जिला शिक्षा अधिकारी ने आनन-फानन में तिवारी को निलंबित कर इतिश्री कर ली, लेकिन इस फर्जीवाड़े में संलिप्त अन्य अधिकारियों को अब तक बख्शा जा रहा है।
यूवा नेता मनीराम जांगड़े ने इस पूरे मामले में बड़ा सवाल उठाते हुए कहा है कि बिना शैक्षणिक कार्य किए इतना बड़ा वेतन निकालना अकेले आनंद तिवारी के बूते का नहीं हो सकता। उन्होंने कहा, “यह एक संगठित लूट है, जिसमें पूर्व संकुल समन्वयक देवकीनंदन वैष्णव और वर्तमान समन्वयक शिवनंदन राजवाड़े की भूमिका संदिग्ध ही नहीं, स्पष्ट रूप से दोषपूर्ण है। इन दोनों ने हर महीने फर्जी उपस्थिति बनाकर तिवारी को वेतन दिलाया।”
मनीराम ने जिला शिक्षा अधिकारी टी.पी. उपाध्याय को पत्र लिखकर मांग की है कि सिर्फ निलंबन नहीं, बल्कि FIR दर्ज कर तत्काल रिकवरी की प्रक्रिया शुरू की जाए। उन्होंने आरोप लगाया कि विभाग के बड़े अधिकारी शिकायतों को बार-बार दबाते रहे और जनप्रतिनिधियों की बातों को भी नजरअंदाज करने की कोशिश की गई। यदि समय रहते क्षेत्रीय जनप्रतिनिधि सक्रिय नहीं होते, तो यह घोटाला अभी भी चलता रहता।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यदि 7 दिनों के भीतर दोषियों पर कार्रवाई नहीं हुई, तो वे जनआंदोलन की राह पर उतरेंगे, जिसकी जिम्मेदारी सीधे तौर पर शिक्षा विभाग की होगी। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय, स्कूल शिक्षा सचिव, संभाग आयुक्त और कलेक्टर को भी पत्र भेजकर पूरे भ्रष्टाचार की जांच और कठोर दंड की मांग की गई है।
यह मामला सिर्फ एक शिक्षक का नहीं, बल्कि पूरे तंत्र की चूक और मिलीभगत का आईना है। अब सवाल उठता है – क्या केवल निलंबन से 65 लाख के वेतन घोटाले की लीपापोती हो जाएगी या फिर जिम्मेदारों पर भी गिरेगी गाज?

Author: Ritesh Gupta
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