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“जब भू-माफिया ही मालिक बन बैठे, तो स्कूल कहाँ जाएंगे?” “शासकीय स्कूल की ज़मीन पर डाका – कब जागेगा सिस्टम?” “फर्जी पट्टों से सरकारी जमीन की लूट – सुशासन शर्मिंदा!”

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32 एकड़ स्कूल की जमीन निगल गए भू-माफिया, स्थानीय प्रशासन बना ‘दलालों’ का भागीदार!
कोरबा/पसान। यह खबर किसी दूर-दराज गांव की नहीं, बल्कि “सुशासन” की बात करने वाले छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले की है—जहाँ एक सरकारी स्कूल की 32 एकड़ जमीन को भू-माफिया हड़प रहे हैं और जिम्मेदार अधिकारी या तो चुप हैं, या जानबूझकर आँखें मूंदे बैठे हैं।
शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, पसान की बेशकीमती भूमि पर अतिक्रमणकारी खुलेआम कब्जा कर रहे हैं। फर्जी पट्टे बनाकर सरकारी ज़मीन को निजी संपत्ति बताया जा रहा है। यह सब उस राज्य में हो रहा है जो “स्कूल चले हम” जैसे अभियान चलाता है, लेकिन जमीन पर स्कूल की नींव तक को खत्म होने दे रहा है!
कहाँ है प्रशासन? कहाँ है शिक्षा विभाग?
प्रशासन से बार-बार शिकायतों के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई। सीमांकन नहीं हुआ, अतिक्रमण नहीं हटा, और न ही पट्टों की जांच हुई। क्या प्रशासन खुद भू-माफियाओं की जेब में बैठा है?
प्राचार्य की गुहार – सिस्टम बना गूंगा-बहरा
थक-हारकर विद्यालय प्राचार्य ने अब “सुशासन तिहार” में गुहार लगाई है—लेकिन सवाल है, क्या सुशासन केवल पोस्टर-बैनर और भाषणों तक सीमित है? अगर सरकारी स्कूलों की ज़मीन तक को नहीं बचाया जा सकता, तो आम जनता किस भरोसे जिए?
जनता पूछ रही है:
32 एकड़ जमीन का मालिक कौन? स्कूल या माफिया?
क्या फर्जी पट्टा बनवाना अब कानूनी कब्जे का तरीका है?
कब तक अधिकारी फाइलों में “जांच जारी है” का नाटक करेंगे?
क्या सुशासन तिहार का मतलब “भू-माफियाओं का उत्सव” है?
अब जनता चुप नहीं बैठेगी।
अगर प्रशासन ने अविलंब सीमांकन, अतिक्रमण हटाने और दोषियों पर आपराधिक कार्रवाई नहीं की, तो जन आंदोलन की चेतावनी दी जा रही है।
“सरकारी जमीन जनता की है, माफिया की जागीर नहीं!”
Ritesh Gupta
Author: Ritesh Gupta

Professional JournalisT

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